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लाॅकडाउन में बढ़ी वै ज्ञानिकों की चिंता, अटके ग्लेशियर के रिसर्च वर्क, कैसे बनेगा रक्षा कवच?

Uttarakhand News: प्रमुख शोध (Glacier Research In Uttarakhand) कार्य हर साल अप्रैल से अक्टूबर तक चलता है, अध्ययन से ग्लेशियर (Glacier In Uttarakhand) की सुरक्षा कवच बनाने में मिलती है मदद…
 

देहरादूनApr 22, 2020 / 06:16 pm

Prateek

Lakes made after melting of glaciers creates increased risk of disaster

Lakes made after melting of glaciers creates increased risk of disaster

अमर श्रीकांत
देहरादून: वैज्ञानिक हर साल ग्लेशियर के मिजाज को परखते हैं। हर साल अप्रैल में रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों का जमावड़ा ग्लेशियर के पास हो जाता है, लेकिन लाॅकडाउन की वजह से इस बार ग्लेशियर पर होने वाले शोध कार्य खटाई में पड़ते दिख रहे हैं।


अप्रैल से शुरू होता है शोध…

प्रमुख शोध कार्य हर साल अप्रैल से अक्टूबर तक चलता है। इस दौरान वैज्ञानिक बड़ी ही सूक्ष्मता के साथ ग्लेशियर में होने वाले हर तरह के बदलाव का अध्ययन करते हैं और उससे जुड़े आंकड़ों को सहेजते हैं जिस पर ग्लेशियर विशेषज्ञ शोध करते हैं। इस तरह अप्रैल से अक्टूबर तक होने वाले कार्य को फील्ड वर्क कहा जाता है। इस दौरान ही यह जानने की कोशिश की जाती है कि ग्लेशियर आगे की तरफ बढ़ रहा है या फिर अपने मूल स्थान से पीछे की ओर खिसक रहा है।

 

इन ग्लेशियर पर रहता है ज्यादा फोकस…

अधिकतर वैज्ञानिकों का फोकस चारधाम यात्रा रूट में पड़ने वाले गंगोत्री और केदारधाम धाम के चैराबाड़ी ग्लेशियर पर टिका रहता है। वैज्ञानिकों की मानें तो सबसे बड़ा गंगोत्री ग्लेशियर है जिसका मिजाज निरंतर बिगड़ रहा है। 32 किलोमीटर लंबा और 2 किलोमीटर चैड़ा गंगोत्री ग्लेशियर लगातार पीछे की ओर खिसक रहा है। अब तक प्रति वर्ष 27 मीटर खिसकने का रिकार्ड वैज्ञानिकों ने दर्ज किया गया है। लेकिन इस साल गंगोत्री ग्लेशियर की स्थिति क्या है, यह जानकारी वैज्ञानिक तभी जुटा पाएंगे, जब वे वहीं जाकर अध्ययन करेंगे। ठीक यही स्थिति चैराबाड़ी ग्लेशियर की भी है जो 6 से 7 मीटर हर साल पीछे खिसकता रहा है।


दरअसल, वैज्ञानिकों की इन ग्लेशियरों के खिसकने की गति की जानकारी संग्रह करना इस साल भी जरूरी है। लेकिन, लाॅकडाउन से रिसर्च वर्क उलझा हुआ दिखाई दे रहा है। वैसे पूरे देश में 9 हजार 575 ग्लेशियर हैं जिसमें 968 महत्वपूर्ण ग्लेशियर उत्तराखंड में ही है। गंगोत्री ग्लेशियर और चैराबाड़ी ग्लेशियर के हर मूवमेंट को समझने के लिए वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के अलावा जियोलाॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, गढ़वाल विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के 25 से ज्यादा वैज्ञानिक शोध कार्य में जुटते हैं। साथ ही, वैज्ञानिक अपने अध्ययन से पता करते हैं कि गर्मियों में पानी की क्या स्थिति रहेगी। इसके लिए मेल्ट वाटर स्टडी भी किया जाता है। अध्ययन से पाॅजिटिव और निगेटिव चीजों की जानकारी मिलती है जिससे ग्लेशियर की सुरक्षा कवच बनाने में मदद मिलती है। साथ ही, इस साल के अध्ययन से अगले साल ग्लेशियर को लेकर रणनीति तैयार की जाती है। ऐसे में वैज्ञानिक भी लाॅकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहे हैं।

 

‘लाॅकडाउन खत्म होने पर ही शोध कार्य शुरू किए जाएंगे। तेजी के साथ ग्लेशियर खिसक रहे हैं। अब शोध के बाद ही ताजा स्थिति की जानकारी लग पाएगी।’
-मनीष मेहता, ग्लेशियर वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टीट्यूट

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