बताते चलें कि जिले की देवरिया संसदीय सीट का एक बड़ा हिस्सा पड़ोसी जिले कुशीनगर में भी है । कुशीनगर के दो विधानसभा फाजिलनगर और तमकुहीराज इसी क्षेत्र के अन्तर्गत हैं । देवरिया की सदर सीट, रामपुर कारखाना और पथरदेवा विधासनसभा क्षेत्र से ये पूर्ण लोकसभा क्षेत्र गठित होती है। बीते 2014 के चुनाव में काफी अन्तिम समय मे भाजपा ने यहां से अपने प्रत्याशी के रुप मे संगठन से जुड़े पुराने नेता कलराज मिश्र को मैदान में उतारा था। शुरुआती दौर में एकबारगी ऐसा लगा कि भाजपा यहां बाज़ी नहीं मार पाएगी। पर मोदी मैजिक के सहारे अंतिम समय में सारे समीकरण को उलटते हुए कलराज मिश्र जीत गए।
इस सीट पर 2014 के पूर्व की दो लोकसभा चुनावों में सपा व बसपा का कब्जा रहा। दस साल बाद इस सीट पर कमल खिला तो जरुर लेकिन उसमें मोदी मैजिक का ही पूरा असर था। जीत हासिल करने वाले कलराज मिश्र ने देवरिया संसदीय सीट बसपा से छीनी है। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के नियाज अहमद को 265386 मतों के अंतर से पराजित किया। श्री मिश्र को 496500 तथा श्री अहमद को 231114 मिलें, जबकि सपा के बालेश्वर को 150852 मतों के साथ क्रमश: तीसरे तथा कांग्रेस के सभाकुंवर को 37752 मतों के साथ चौथे पायदान से संतोष करना पड़ा।
प्रत्याशी बदलने की चर्चा के बीच प्रत्याशिता की अंधी दौड़ में भाजपा के कई बड़े नेता संसदीय क्षेत्र में अपनी उपस्थिति अपने अपने तरीके से दर्ज करवा रहे हैं । भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि , एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह , गोरखपुर की पूर्व मेयर डॉ. सत्या पाण्डेय के साथ साथ अन्दरखाने से प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के नामो की चर्चा तेज है । समाजवादी पार्टी का संगठन भी अन्दरूनी तौर पर अपने को मजबूत करने में लगा है।
साथ ही इस संसदीय सीट को अपने पक्ष में किसी भी प्रकार करने की योजना को अमलीजामा पहनाने में लगा है। चर्चाओं की माने तो अखिलेश सरकार में देवरिया और कुशीनगर से मंत्री रहे दो चेहरे ब्रम्हा शंकर त्रिपाठी और राधेश्याम सिंह टिकट की होड़ में लगे हैं। पूर्व समाजवादी विचारक और साँसद रहे स्व. मोहन सिंह की बेटी पूर्व राज्य सभा साँसद कनकलता सिंह और सपा जिलाध्यक्ष राम इक़बाल यादव भी अपनी उम्मीदवारी के लिए दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। पिछले चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहने वाले बसपा उम्मीदवार नियाज अहमद का मार्मिक अपील करता बैनर इन दिनों काफी चर्चा में है। कई चुनाव हारने का ज़िक्र करते हुए इस बार मतदाताओं से वो जिताने की गुजारिश करते नजर आ रहे है।
जातीय आंकड़ों को देखें तो बसपा का मतदाता वर्ग ही हरदम एकजुट होता दिखता है लेकिन 2014 में उसमे भी सेंध लग गयी थी। वैसे एक बात जो हरदम दिखती है कि अल्पसंख्यक वर्ग का मतदाता भाजपा को टक्कर देने वाले प्रत्याशी के पक्ष में अपना मत देता है। वैसे प्रत्याशी कौन बनेगा, क्या समीकरण होंगे, गठबन्धन होगा या नही, होगा तो हिन्दू कार्ड का क्या असर होगा, होगा तो कितना सर्वसमाज उसे स्वीकार्य करेगा। मोदी के विकास का मुद्दा बनेगा या फिर वही जातिगत आंकड़ों का डंका बजेगा, क्या एक बार फिर मोदी मैजिक के सहारे ही बैतरणी पार होगी ? बहुत सारे यक्ष प्रश्न हैं जो आगे के दिनों में सामने आएंगे। क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्त में है लेकिन 2019 के लोक सभा चुनाव के लिए सीट हथियाने की मारामारी अभी से शुरु हो गयी है।