बताते चलें कि जिले का यह कोई पहला स्कूल या कालेज नही है जिसे बिना सारी औपचारिकता के मान्यता दे दी गयी है ऐसे विद्यालय चार – पाँच नही बल्कि पचासों की संख्या में हैं । सूत्र बताते हैं कि डीआईओएस कार्यालय और बेसिक शिक्षा कार्यालय में इस तरह के मान्यता देने के काम के निर्धारित सुविधा शुल्क निर्धारित हैं और बाबुओं को उसे बताने में भी कोई हिचकिचाहट भी नही है । खुला खेल फर्रुखाबादी वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए ऐसे बहुत सारे विद्यालयों को मान्यता दे दी गयी है जहाँ बच्चों की जान खतरे में है और उनके अभिभावक विद्यलायों की मनमानी से परेशान हैं लेकिन विद्यालय प्रबन्धन की शिकायत यदि किसी ने भूले भटके कर दिया तो खुद उसकी शामत आ खड़ी होती है ।
क्लास नौवीं की छात्रा नीतू चौहान की दुखद मौत के बाद पुलिस अपनी जाँच पूरे गहनता से करती दिख रही है । धीरे धीरे कदम बढ़ाया जा रहा है । स्कूल प्रबंधन और मृतका के क्लास के बच्चों से लगातार पूछताछ करते हुए सबूतों के तारतम्य को बैठाया जा रहा है । घटना की हुई फारेंसिक जाँच मे भी काफी कुछ निकलकर सामने आने की बात कही जा रही है ।
इस सिटी मान्टेसरी विद्यालय की तरह कुकुरमुत्ते की तरह गली गली खुले विद्यालय किस प्रकार घूस के बल पर बड़ी बड़ी मान्यता ले लेते हैं ये नीतू चौहान की मौत के बाद खुलकर सामने आ गया है । इस स्कूल प्रबन्धन ने एक ही कैम्पस का हवाला देकर प्राइमरी , जूनियर और इटर तक की मान्यता ले रखी है । कैसे मिला , किसने दिया , ये तो विभागीय लोग सब जानते हैं लेकिन इस के मौत के बाद इसके लिए बकायदा जिलाधिकारी ने जाँच टीम गठित की है और उसके मुखिया मान्यता पर अंतिम मोहर लगाने वाले जिले के डीआईओएस और बीएसए ही बनाये गए हैं । जाँच कब तक होगी , कब उसका परिणाम जनता जान सकेगी ये बताने को कोई तैयार नही है ।