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संक्रमण के डर से घर बैठ जाते तो खुद को क्या मुंह दिखाते- डॉ. पवन
देवास शहर के प्राइम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के संचालक डॉ. पवन कुमार चिल्लोरिया ने बताया कि कोरोना के समय हर व्यक्ति भयभीत था। चारों ओर डर फैला हुआ था। कई बार हमको भी लगा कि संक्रमित हो सकते हैं। घर पर ही बैठें, लेकिन मन में विचार आया कि जब ऐसे मौके पर उपचार नहीं करेंगे तो खुद को क्या मुंह दिखाएंगे। इसके बाद कोविड के जोखिम के बीच उपचार किया और जब मरीज स्वस्थ होकर घर गया तो मन को सुकून मिला। प्राइम अस्पताल में देवास के मरीजों का तो उपचार हुआ ही दूसरे जिलों के मरीज भी उपचार के लिए आए। डॉ. चिल्लोरिया ने बताया कि कई बार मरीज 90 फीसदी से अधिक संक्रमित होने के बाद अस्पताल पहुंचे। कुछ की जान तो बचाई लेकिन कुछ को नहीं बचा सके, इसका दुख भी हुआ। इसलिए सबको यही सलाह दी कि शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क करें। डॉ. चिल्लोरिया ने बताया कि पीपीई किट पहनकर काम करना अपने आप में बेहद कठिन काम है क्योंकि इसमें बहुत गर्मी लगती है। मैंने और हॉस्पिटल के स्टाफ ने पीपीई किट पहनकर ही काम किया। गर्मी के सीजन में पीपीई किट पहनकर काम करना बहुत बड़ा मुश्किल काम है लेकिन खुद को संक्रमण से बचाने के लिए यह जरूरी था। वैक्सीनेशन करवा
लिया था तो डर कम था।
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‘मां हमेशा टोकती थी कि घर पर रहो’
डॉ. चिल्लोरिया ने बताया कि कोरोना काल में घरवालों ने भी कई बार मना किया कि क्या अस्पताल जाना जरूरी है। मां ने अक्सर कहा कि संक्रमण का खतरा है। घर पर ही रहो। मां को समझाता था कि जो लोग घर पर थे वे भी तो संक्रमित हुए। इस समय यदि मैंने काम नहीं किया तो किस काम का डॉक्टर। इसलिए पूरे कोविड काल में काम किया। सुबह से रात तक अस्पताल में रहते थे। सुबह 9 से 10 बजे तक घर से निकल जाते थे और रात करीब 11 बजे तक वहीं रहते थे। अप्रेल में तो रात 12 बजे तक काम किया क्योंकि उस समय काफी भयावह स्थिति थी। परिवार से खुद को अलग रखता था क्योंकि इंफेक्शन का खतरा था। करीब दो माह तक न किसी कार्यक्रम में गया न ही परिजनों के संपर्क में रहा।
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