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धमतरी

दिखी सूखे की चिंता, दिखाया एका, …और लहलहा उठे खेत

रदेश में जब चारों तरफ सूखे की मार दिख रही है, तब यहां के किसानों की एकजुटता से खेत लहलहा रहे हैं

धमतरीSep 15, 2015 / 09:24 am

चंदू निर्मलकर

Togetherness show

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घमतरी. कहते हैं, अगर मुसीबत बड़ी हो तो मिल-जुलकर उसका हल निकाला जा सकता है। इस बात को सच कर दिखाया है, धमतरी से 15 किलोमीटर दूर संबलपुर के बोडरा बलिआरा गांव में किसानों ने। प्रदेश में जब चारों तरफ सूखे की मार दिख रही है, तब यहां के किसानों की एकजुटता से खेत लहलहा रहे हैं। यहां फटी हुई धरती और किसानों के निस्तेज चेहरे नहीं बल्कि हरे-भरे खेतों के बीच उनका दमकता चेहरा नजर आ रहा है। यहां के किसानों ने विपरीत हालात में एक-दूजे का हाथ थामे और अपने खेतों के “सोने” की चमक को बरकरार रखने की मिसाल कायम की है। बुजुर्ग लालचंद बताते हैं, हमारे यहां गंगरेल बांध से निकली नहर ने भी जवाब दे दिया। अब सवाल था क्या करें? हमने रास्ता तलाशा और अपनी-अपनी बोरिंग में पाइप लगाकर नहर के चैनल को भर खेतों को सींचना शुरू कर दिया। नतीजा सामने है, दो किमी के क्षेत्र में तकरीबन 80 एकड़ खेतों में फसल लहलहा उठी है।

…और इस तरह किसानों ने बना ली अपनी राह

अभियान में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बोडरा बलिआरा के किसान गौकरण बताते हैं, 20 अगस्त को सूखे के हालात को लेकर किसानों की बैठक बुलाई गई थी तो गांव के पवन और उम्मेदी लाल की ओर से प्रस्ताव आया कि फसलों को बचाने का एक रास्ता है। जिनके पास पंप हैं, उनमें पाइप लगाकर पानी नहर से जुड़े उस चैनल में लिफ्ट करें जो खेतों तक जाती है। इसमें एक समस्या थी कि आगे पानी कई हिस्सों में बंटकर दूसरे इलाकों में चला जाता। विचार-विमर्श के बाद तोड़ निकाला गया, खाली पड़े यूरिया के बोरों में बालू भरकर उन मार्गों को बंद कर दिया जाए, जिनसे पानी बह जाता है। बड़ी समस्या बिजली और तेल-पानी से जुड़े खर्च की थी। इसका हल निकाला गया कि प्रति एकड़ किसानों से 500 रुपए लेकर एक कोष बनाया जाए। बस बात बन गई और आज उनके खेतों में सोना चमक रहा है।

अब छलकते हैं खुशी के आंसू
गांव के गौकरण, किशुन राम, हुबलाल, महेंद्र, लालचंद बताते हैं, पानी की जब जरुरत होती है, उसके पहले बैठक बुलाई जाती है और उसके बाद पानी छोड़ा जाता है। वो बताते हैं, यहां एक एकड़ में करीब 24 क्विंटल धान होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 80 एकड़ में कितनी फसल बची होगी। कम से कम 40 परिवारों को सबने मिलकर टूटने से बचाया। नहीं तो कर्ज और फसल की तबाही उनकी उन्हें जीने नहीं देती। गांव के नंदघर साहू की आंखें तो ख़ुशी से छलक जाती हैं। कहते हैं, ईश्वर हम सबके बीच ही बैठा है और वह हमारे खेतों की रखवाली कर रहा है।

पहली बार देखी ऐसी पहल
कृषि विकास अधिकारी जी.बी.एस. राजपूत कहते हैं, मैंने अपनी 30 साल की नौकरी में पहली बार ऐसा देखा, जब इस तरह से सिंचाई की गई। ऐसा दृश्य कहीं-कहीं केरल में नजर आता है। गांव के उम्मीदलाल कहते हैं, न दे सरकार पानी हम किसान एक-दूसरे की मदद कर लेंगे।
(संबलपुर से आवेश तिवारी)
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