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जो वादे करते हैं निभाना तो दूर जीतने के बाद याद तो रखे

locationधारPublished: Mar 11, 2019 12:57:50 am

Submitted by:

amit mandloi

पत्रिका संडे क्लब
पार्टी कोई भी हो उम्मीदवार चुनने से पहले आम आदमी की तरह सोचे

Dhar office

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धार. चुनाव में टिकट मिलते ही बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। चुनाव जीतने के लिए वादों की लिस्ट बनती है, लोगों के पैर पकड़े जाते हैं। अपने पक्ष में वोट करने के लिए उनकी परेशानियां पूछी जाती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद मामला उल्टा हो जाता है। पहले जिनके पैर पकड़े जाते हैं अब वे ही अपना काम याद दिलाने के लिए जनप्रतिनिधि के पैर पकडऩे को मजबूर हो जाते हैं। ऐसा होना नहीं चाहिए। हर पार्टी का उम्मीदवार चुनाव से पहले जो वादे करता है उन्हें निभाना तो दूर की बात उन्हें याद भी नहीं रख पाता है। क्योंकि वे ही बातें पूरी हो सकती है, जो दिमाग में रहती हैं। रविवार को पत्रिका द्वारा आयोजित चुनावी समर में अपने उम्मीदवार की खूबियां और उससे अपेक्षाओं पर टॉक शो में शामिल होने वाले आम नागरिकों ने खुलकर अपनी बातें रखी। कुछ समस्याएं इस प्रकार की सामने आई कि हर सांसद को राष्ट्रीय महत्व की विभिन्न समितियों में स्थान दिए जाने के बारे में उनकी ही पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को जानकारी नहीं होती। हालांकि इस शो में कुछ राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोग भी शामिल हुए, लेकिन उन्होंने भी पार्टी को दरकिनार कर आम आदमी की तरह अपने विचार व्यक्त किए।
पार्टी कोई भी हो चुनाव मैदान में उतारने से पहले उम्मीदवार का इतिहास देखे। उसकी ईमानदारी, निश्छल छवि, लोगों से लगाव व वादे पूर करने की क्षमता का आकलन जरूरी है। इन सभी बातों से ना केवल उम्मीदवार बल्कि पार्टी का भविष्य भी तय होता है।
-जितेंद्र शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

टिकट ऐसे व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जो संपूर्ण लोकसभा या अपने क्षेत्र को एक साथ लेकर चले।
-हुकुम कासलीवाल, व्यवसायी

जीतने के बाद नेताओं में मिलनसारिता ही खत्म हो जाती है। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार हो, जनता ये चाहती है कि वह तत्पर और मिलनसार हो। जीतने के बाद ये नहीं भूलना चाहिए कि वह किसके वोटों से जीता है।
-पवन जैन गंगवाल, रेल लाओ समिति

वरिष्ठता का अभिमान नहीं होना चाहिए। वह हमेशा सभी लोगों से समानता व मित्रता का व्यवहार बनाए रखे और अपने क्षेत्र की समस्याओं पर प्राथमिकता से ध्यान दे।
-कालीचरण सोनवानिया, उपाध्यक्ष नपा परिषद, धार
क्षेत्रीय पलायन पर तभी रोक लग सकती है, जब स्थानीय स्तर पर रोजगार की पर्याप्त उपलब्धता हो। सभी विधानसभा को साथ लेकर यह सोच बनाना जरूरी है, क्योंकि हमारा आदिवासी जिला पलायन के रोग से बुरी तरह ग्रसित है।
-बंटी डोड, लोक निर्माण समिति अध्यक्ष, नपाप धार

क्षेत्र की समस्याओं को तत्परता से निपटाने का माद्दा जिसमें हो, हर पार्टी को ऐसे ही उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहिए। अक्सर जनप्रतिनिधि विकास कार्य भूल दूसरे कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं।
-धर्मेंद्र जोशी, समाजसेवी
हर उम्मीदवार सामाजिक विकास के साथ खेलभावनाओं से ओपतप्रोत हो। क्योंकि वह पार्टी का नहीं क्षेत्र का सांसद होता है।

-शमशेर सिंह, पूर्व क्रीड़ा अधिकारी

हाइटेक जमाना है और हर राजनीतिक पार्टी टिकट देने से पूर्व उसके बारे में पूरी जानकारी अच्छे से निकाल सकती है।
-सलील यादव, पूर्व खिलाड़ी
गांव गोद लेने की अच्छी परंपरा है, लेकिन पांच साल में एक ही गांव का पूरा विकास नहीं हो पाता, जबकि हर साल एक गांव के विकास का दायित्व सौंपा गया है।

-अवध द्विवेदी, अभिभाषक
जनप्रतिनिधि किसी भी पार्टी का हो, बेरोजगारी को दूर करने की प्राथमिकता रखना चाहिए। प्रत्येक पार्टी को टिकट देने से पूर्व उम्मीदवार की व्यावहारिकता को ध्यान में रखना चाहिए।
– अजय चौधरी, उपाध्यक्ष, उपभोक्ता फोरम
राइट टू रिकॉल का प्रावधान विधायक व सांसद के लिए भी होना चाहिए। क्योंकि एक बार चुनाव जीतने के बाद उन्हें लगता है कि वे पांच साल के राजा बन गए, जो जनता के लिए दर्द बन जाता है।
-गोटू शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता

हर पार्टी को टिकट देने से पहले थाने से उम्मीदवार का रिकॉर्ड तो निकाला जाए। गुंडों को तो कतई टिकट ही नहीं देना चाहिए।
-भूपेंद्र चौहान, व्यापारी

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