आज पूरी दुनिया मोहनदास करमचन्द गांधी को भारत के राष्ट्रपिता बापु महात्मा गांधी के नाम से जानती है। गांधी जी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। गुजरात से उन्हें बापू यानी पिता) के नाम की पहचान मिली। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगीं थीं। हर साल 2 अक्टूबर को भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
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गांधीजी का जन्म हिंदू धर्म में हुआ था, उनके पूरे जीवन में अधिकतर सिद्धान्तों की उत्पति हिंदुत्व से ही हुई थी। गांधी जी ने धर्म-परिवर्तन के सारे तर्कों एवं प्रयासों को अस्वीकृत किया। वे ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़ते थे। उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में लिखा है – हिंदू धर्म, इसे जैसा मैंने समझा है, मेरी आत्मा को पूरी तरह तृप्त करता है, मेरे प्राणों को आप्लावित कर देता है।
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श्रीमद् भगवद्गीता के बारे में गांधी जी कहते थे जब कोई भी संदेह मुझे घेर लेता है, जब निराशा मेरे सम्मुख आ खड़ी होती है, जब क्षितिज पर प्रकाश की एक किरण भी दिखाई नहीं देती, तब-तब मैं ‘ श्रींद्भगवद्गीता’ की शरण में जाता हूं और उसका कोई-न-कोई श्लोक मुझे सांत्वना दे जाता है, मार्गदर्शन करता है और मैं घोर विषाद के बीच भी तुरंत मुस्कुराने लगता हूं। मेरे जीवन में अनेक बाह्य त्रासदियां घटी है और यदि उन्होंने मेरे ऊपर कोई प्रत्यक्ष या अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा है तो मैं इसका श्रेय ‘भगवद्गीता’ के उपदेशों को देता हूं।
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