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विचार मंथन : सत्य, सेवा और सच्ची धार्मिकता के मार्ग में सुविधाओं की अपेक्षा कष्ट ही अधिक उठाने पडते हैं- महात्मा गांधी

locationभोपालPublished: Oct 01, 2019 04:07:36 pm

Submitted by:

Shyam

Daily Thought Vichar Manthan : Mahatma Gandhi : गंभीर रूप से घायल होने पर भी मैंने सत्य और सेवा नहीं छोड़ी- महात्मा गांधी

विचार मंथन : सत्य, सेवा और सच्ची धार्मिकता का मार्ग में सुविधाओं की अपेक्षा कष्ट ही अधिक उठाने पडते हैं- महात्मा गांधी

विचार मंथन : सत्य, सेवा और सच्ची धार्मिकता का मार्ग में सुविधाओं की अपेक्षा कष्ट ही अधिक उठाने पडते हैं- महात्मा गांधी

बात उन दिनों की है जब मैं दक्षिण अफ्रीका में था। अफ्रीकियों के स्वत्वाधिकार के लिए मेरा आंदोलन सफलतापूर्वक चल रहा था, ब्रिटिश सरकार के इशारे पर एक दिन मीर नामक एक पठान ने मुझ पर हमला कर दिया और मैं गंभीर रूप से घायल हो गया। मैने सोचा मनुष्य का सत्य, सेवा और सच्ची धार्मिकता का मार्ग है ही ऐसा कि इसमें मनुष्य को सुविधाओं की अपेक्षा कष्ट ही अधिक उठाने पडते हैं।

पर इससे क्या बुराई की शक्ति अपना काम बंद नही करती तो फिर भलाई की शक्ति तो सौगुनी अधिक है, वह हार क्यों मानने लगे कुछ लोगों ने मुझे स्वदेश लौटने का आग्रह किया गया पर मैं नहीं लौटा। मेरी घायल अवस्था को देख पादरी जोसेफ डोक ने मुझे अपने घर का मेहमान बन लिया और कुछ ही दिनों मे यह संबध घनिष्टता में परिवर्तित हो गया। पादरी जोसेफ डोक यद्यपि बैपटिस्ट पंथ के अनुयायी और धर्म-गुरु थे, फिर भी वें भारतीय धर्म और सस्कृति से अत्यधिक प्रभावित हुए और मेरा साथ देने लगे। बाद में वे धीरे-धीरे भारतीय स्वातंत्रता संग्राम का भी समर्थन करने लगे।

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एक दिन पादरी डोक के एक अंग्रेज मित्र ने उनसे आग्रह किया कि वे भारतीयों के प्रति इतना स्नेह और आदर भाव प्रदर्शित न करें अन्यथा जातीय कोप का भाजन बनना पड़ सकता है, इस पर डोक ने उत्तर दिया- मित्र क्या अपना धर्म-पीडितों और दुखियों की सेवा का समर्थन नहीं करता, क्या गिरे हुओं से ऊपर उठने मे मदद देना धर्म-सम्मत नही? यदि ऐसा है तो मैं अपने धर्म का ही पालन कर रहा हूं। भगवान् ईसा भी तो ऐसा ही करते हुए सूली पर चढे थे फिर मुझे घबराने की क्या आवश्यकता?

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पादरी डोक के उस मित्र की आशंका सच निकली कुछ ही दिनों में गोरे उनके प्रतिरोधी बन गये और उन्हें तरह-तरह से सताने लगे। ब्रिटिश अखबार उनकी सार्वजनिक निंदा और अपमान करने से नहीं चूके थे, लेकिन इससे पादरी डोक की सिद्धांत-निष्ठा में कोई असर नही पडा़। बहुत सताए जाने पर भी पादरी डोक भारतीयों का समर्थन भावना पूर्वक करते रहे।

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मैं स्वंय भी पादरी डोक के इस त्याग से बहुत प्रभावित था, लेकिन मैं इस बात से दुःखी भी था कि डोक का उत्पीडित नहीं देख पा रहा था। इसलिये एक दिन उनके पास जाकर बोला मित्र डोप आपको इन दिनों अपने जाति भाइयों से जो कष्ट उठाने पड रहे हैं उसके कारण मैं सभी भारतीयों की ओर से आपका आभार मानता हूं, पर आपके कष्ट मुझसे देखे नहीं जाते। आप हम भारतीयों को समर्थन देना बंद कर दें। वह परमात्मा हमारे साथ हैं यह लडाई भी हम लोग निपट लेगे।

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इस पर पादरी डोक ने मुझसे कहा मि० गांधी आपने ही तो कहा था कि धर्म एक और सनातन है पीडित मानवता की सेवा।’ फिर यदि सांप्रदायिक सिद्धन्तों की अवहेलना करके मैं सच्चे धर्म का पालन करूं तो इसमे दुख करने की क्या बात और फिर यह तो मैं स्वांतः सुखाय करता हूं। मनुष्य धर्म की सेवा करते आत्मा को जो पुलक और प्रसन्नता होनी चाहिए, वह प्रसाद मुझे मिल रहा है, इसलिए बाह्य अडचनों, दुःखों और उत्पीडनों की मुझे किंचित भी परवाह नही। पादरी डोक अंत तक भारतीयों का समर्थन करते रहे। उन जैसे महात्माओं के आशीर्वाद का फल है कि हम भारतीय अपने धर्म, आदर्श और सिद्धन्तों पर निष्कंटक चलने के लिए स्वतंत्र है।

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