भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी का अजा या कामिका एकादशी के नाम से पूजा जाता है। इस दिन
भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तथा रात्रि जागरण व व्रत किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन का व्रत करने से समस्त पापों और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के पश्चात बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें एकादशी व्रत पूजा अजा एकादशी का व्रत करने के लिए सुबह घर की सफाई आदि करने के बाद स्नान-ध्यान आदि कर स्वच्छ व धुले हुए कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद पूजा कक्ष में शुद्ध स्थान पर धान्य (यथा गेंहू) रख कर उस पर पानी से भरा कलश स्थापित करें। कलश को लाल रंग के वस्त्र से सजाएं तथा पूजा कर इस कुंभ के ऊपर ही भगवान विष्णु कीप्रतिमा की स्थापना करें।
प्रतिमा के समक्ष व्रत करने का संकल्प कर अपनी पूजा का आरंभ करें। इसके बाद प्रतिमा की षोड़शोपचार पूजा कर भगवान को धूप, दीप बत्ती, प्रसाद आदि समर्पित करें। तत्पश्चात मां लक्ष्मी की पूजा करें तथा पूजा में जाने-अनजाने हुए अपराधों के लिए क्षमा मांगते हुए भगवान से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
यह है अजा एकादशी व्रत की कथा अजा एकादशी की कथा राजा हरिशचन्द्र से जुड़ी हुई है। वह अन्यंत वीर प्रतापी तथा सत्यवादी राजा थे। उन्होंने अपने वचन की रक्षा के लिए अपनी पत्नी तथा पुत्र सहित स्वयं को भी बेच दिया था और एक चांडाल के सेवक बन गए।
इस संकट के बाद महर्षि गौतम ने राजा हरिशचन्द्र को अजा एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया ताकि वो अपने दुर्भाग्य से मुक्ति पा सकें। राजा हरिशचन्द्र ने महर्षि के बताए अनुसार एकादशी का व्रत किया और उनके समस्त पाप नष्ट होकर उन्हें पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। व्रत के प्रभाव से ही उन्हें अपनी पत्नी तथा पुत्र भी सकुशल वापस मिल गए। मृत्यु उपरांत वे अपने परिवार सहित स्वर्गलोक गए।
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