निर्जला एकादशी का व्रत दिलाता है समस्त पापों से मुक्ति
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है
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ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि वेदव्यासजी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था। इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा। इस एकादशी के दिन व्रत व उपवास करने का विधान भी है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
‘निर्जला’ अर्थात ‘जल के बिना रहना’, इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, यह एक कठिन व्रत होता है। इस व्रत को निर्जल रखा जाता है अर्थात इस व्रत में जल का सेवन भी नहीं किया जाता। इस एकादशी को करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है। यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी तिथि में ब्रह्मबेला में उठकर स्नान, दान तथा ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इस दिन नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करके गोदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी पूजा कैसे करें
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन आरंभ हो जाता है। इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है। इस व्रत में सबसे पहले श्रीविष्णुजी की पूजा की जाती है तथा व्रत कथा को सुना जाता है। पूजा-पाठ के पश्चात सामथ्र्र्य अनुसार ब्राह्मणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए। संभव हो सके तो व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
महाभारत काल में भीमसेन ने व्यासजी से कहा कि- हे भगवान, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुंती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं, परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके उन्हें प्रसन्न कर सकता हूं। मैं बिना काया को कष्ट दिए ही फल प्राप्त करना चाहता हूं, अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें।
इस पर व्यासजी ने भीम को निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। भीमसेनजी ने इस व्रत के प्रभाव से अपने समस्त पापों के मुक्ति पाकर स्वर्गारोहण किया।
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