धर्म-कर्म

कहीं आपने भी तो नहीं पहन रखा है मोती रत्न..

कुंडली में चंद्रमा की स्थिति व उसके प्रभाव के अनुसार ही पहना जाता है मोती रत्न
 

भोपालJun 21, 2019 / 01:05 pm

Shyam

कहीं आपने भी तो नहीं पहन रखा है मोती रत्न..

ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के अनेक कष्टों का हल बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति को मिलने वाली सभी परेशानियों का संबंध नवग्रहों से माना जाता है और इन ग्रहों के रत्नों को धारण करने से मनुष्य के शारीरिक सौंदर्य को बढ़ाने के साथ-साथ अलग-अलग समस्याओं के निवारण में सहायक होते है। रत्नों में लोग सबसे ज्यादा मोती रत्न को पहने देखें जा सकते है। जानें पं. अरविंद तिवारी से कि मोती रत्न को धारण करने की सही जानकारी और मोती क्यों और किसे पहनना चाहिए।

 

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मोती रत्न को धारण करने के लाभ

पं. अरविंद तिवारी ने बताया की मोती, समुद्र में सीपियों से प्राप्त होने वाला अद्भुत रत्न है जो बड़ी ही दुर्लभता से मिलता है। बनावट से शुद्ध मोती बिल्कुल गोल व रंग में दूध के समान सफ़ेद होता है। मोती रत्न का स्वामी ग्रह चंद्रमा है एवं कर्क राशी के जातकों के लिए यह सबसे ज्यादा लाभकारी माना जाता है। कुंडली में चन्द्र ग्रह से सम्बंधित सभी दोषों में मोती को धारण करना लाभप्रद होता है, चंद्रमा का प्रभाव एक जातक के मस्तिष्क पर सबसे अधिक होता है इसलिए मन को शांत व शीतल बनाये रखने के लिए मोती धारण करना चाहिए।

 

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इस अंगुली में ही पहने मोती रत्न

पं. अरविंद तिवारी के अनुसार, किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति व उसके प्रभाव के अनुसार मोती के अलग-अलग लाभ मिलते हैं। इसलिए जब कभी भी आप मोती को धारण करने का मन बनाये तो किसी जानकार से सलाह अवश्य लें। मन व शरीर को शांत व शीतल बनाएं रखने के लिए मोती रत्न को धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, गर्भाशय रोग व ह्रदय रोग में मोती धारण करने से लाभ मिलता है। अगर किसी जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह के साथ राहु और केतु के योग बना हो तो मोती रत्न धारण करने से राहू और केतु के बुरे प्रभाव कम होने लगता है।

 

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मोती रत्न को धारण करने की विधि

मोती रत्न को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार के दिन चांदी की अंगूठी में बनाकर सीधे हाथ की सबसे छोटी ऊंगली में पहनना चाहिए। इसे धारण करने से पूर्व दूध-दही-शहद-घी-तुलसी पत्ते आदि से पंचामृत स्नान कराने के बाद गंगाजल साफ कर दूप-दीप व कुमकुम से पूजन करके नीचे दिये मंत्र को 108 बार जपने के बाद ही धारण करना चाहिए। ध्यान रहे की किसी भी रत्न का सकारात्मक प्रभाव तभी तक रहता है जब तक कि उसकी शुद्धता बनी रहती है।

मंत्र

।। ॐ चं चन्द्राय नमः।।

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