scriptजानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास | Varuthini Ekadashi : Vrat Katha ka Mahatv in hindi | Patrika News

जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास

Published: Apr 17, 2020 04:55:44 pm

Submitted by:

Shyam

18 अप्रैल शनिवार को हैं वरूथिनी एकादशी व्रत

जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास

जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास

18 अप्रैल शनिवार को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है, जिसे वरूथिनी एकादशी कहा जाता है। वैसे तो हर माह में एकादशी तिथि होती है और सबका अपना-अपना महत्व भी है, लेकिन भगवान विष्णु जी के प्रिय वैशाख महीने की वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान के वराह अवतार का पूजन करने वालों की सभी कामनाएं पूरी होने लगती है। इस दिन दान पुण्य करने से वाले लोगों को भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति होती है।

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सभी एकादशी तिथियों में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी बेहद खास मानी जाती है, जिसे वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत से समस्त पाप, ताप नष्ट होने के साथ सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वरूथिनी एकादशी का व्रत अथाह पुण्य फल प्रदान करने वाला माना जाता है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। वरुथिनी एकादशी के बारे में कथा इस प्रकार है- बहुत समय पहले की बात है, माँ नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था जिसका राजा मांधाता था। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे, वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में एकाग्रचित ही लीन रहे, भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई।

जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास

भगवान अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते हैं, विष्णु जी प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया, लेकिन तब तक भालू ने राजा के पैर को लगभग पूरा चबा लिया था। राजा को बहुत पीड़ा हो रही थी, श्री भगवान ने राजा से कहा हे राजन विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि जो मेरे वराह रूप का प्रतिक है, तुम इस दिन मेरे वराह रूप की पूजा करना एवं व्रत रखना । मेरी कृपा से तुम पुन: संपूर्ण अंगों वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप कर्मों का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी।

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श्रीभगवान की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने वरूथिनी एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ किया। परिणाम स्वरूप भालू ने राजा का जो पैर खाया था वह पैर पूरी तरह ठीक हो गया। व्रत करने के पुण्यफल व भगवान वराह की कृपा से जैसे राजा को नवजीवन मिल गया हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट होकर अधिक श्रद्धाभाव से भगवान की साधना में लीन रहने लगा। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से कोई भी उक्त राजा की तरह भगवान की कृपा का अधिकारी बन सकता है।

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