खाना नित अति स्वाद बनाऊंगी
मैं सबके मन को झट भा जाऊँगी।
नमक मिर्च से जब बेस्वाद हो खाना,
बस मैके के तुम ताने न सुनाना। इंसां हूँ मैं, थक भी जाऊँगी,
“आज नही” कह के सो जाऊँगी।
मेरे मन को तुम भी पढ़ लेना,
कल फिर होगी मिलन की रैना।
मैं सबके मन को झट भा जाऊँगी।
नमक मिर्च से जब बेस्वाद हो खाना,
बस मैके के तुम ताने न सुनाना। इंसां हूँ मैं, थक भी जाऊँगी,
“आज नही” कह के सो जाऊँगी।
मेरे मन को तुम भी पढ़ लेना,
कल फिर होगी मिलन की रैना।
गर पुरुष मित्र कोई हो मेरा,
और शक का भी हो घना अंधेरा।
सहधर्मिणी जान मुझको समझना,
व्यभिचारिणी जान के न दूर भागना। जब ताप का मुझ पर हो पहरा,
मन में सन्ताप विरह का गहरा।
मैं बस एक साथ तुम्हारा चाहूँगी,
मैं तो हर बाधा से लड़ जाऊँगी।
और शक का भी हो घना अंधेरा।
सहधर्मिणी जान मुझको समझना,
व्यभिचारिणी जान के न दूर भागना। जब ताप का मुझ पर हो पहरा,
मन में सन्ताप विरह का गहरा।
मैं बस एक साथ तुम्हारा चाहूँगी,
मैं तो हर बाधा से लड़ जाऊँगी।
तकरार भी होगी कभी-कभी,
मनुहार भी होगी कभी कभी।
तुमसे सम्मान अगर मैं पाऊँगी,
सच मानो सम्पूर्ण तभी हो जाऊँगी। दुविधा में कभी जो घिर जाओगे,
और कोई राह अगर न तुम पाओगे।
बस “अहम” त्याग कर ये कह देना,
जब तुम हो संग में तो क्या डरना।
मनुहार भी होगी कभी कभी।
तुमसे सम्मान अगर मैं पाऊँगी,
सच मानो सम्पूर्ण तभी हो जाऊँगी। दुविधा में कभी जो घिर जाओगे,
और कोई राह अगर न तुम पाओगे।
बस “अहम” त्याग कर ये कह देना,
जब तुम हो संग में तो क्या डरना।
हम रास्ते से अगर डिग जाएंगे,
एक दूजे के सम्पूरक हो जाएंगे।
तुम बस प्यार सदा ज़िंदा रखना
और धैर्य से मुश्किल से लड़ना।
मैं पत्नी का धर्म निभाऊंगी,
तुम भी स्वामी बन कर रहना।। सुन लो मेरे प्रियतम प्यारे,
तुम पर मैंने तन-मन वारे।
संग तेरे अब मुझको रहना है,
बस इतना ही तुमसे कहना है।
बबीता शर्मा अध्यापिका
एक दूजे के सम्पूरक हो जाएंगे।
तुम बस प्यार सदा ज़िंदा रखना
और धैर्य से मुश्किल से लड़ना।
मैं पत्नी का धर्म निभाऊंगी,
तुम भी स्वामी बन कर रहना।। सुन लो मेरे प्रियतम प्यारे,
तुम पर मैंने तन-मन वारे।
संग तेरे अब मुझको रहना है,
बस इतना ही तुमसे कहना है।
बबीता शर्मा अध्यापिका