चंबल में बढ़ रहा घडिय़ालों का कुनबा, जल्द शुरू होंगी गणना
धौलपुर. विश्व प्रसिद्ध चंबल घडिय़ाल सेंचुरी ने एक बार फिर प्रदेश का देश में मान बढ़ाया है। यह उपलब्धि वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वर्ष 2019 में किए गए सर्वे के बाद मिली है। 80 के दशक में चंबल में मात्र 46 और देश में महज 96 घडिय़ाल बचे थे। जबकि विश्व में इनकी संख्या 200 के करीब थी।
धौलपुर•Dec 05, 2020 / 04:32 pm•
Naresh
चंबल में बढ़ रहा घडिय़ालों का कुनबा, जल्द शुरू होंगी गणना
चंबल में बढ़ रहा घडिय़ालों का कुनबा, जल्द शुरू होंगी गणना
-वर्ष 2019 में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण के बाद मिली उपलब्धि।
धौलपुर. विश्व प्रसिद्ध चंबल घडिय़ाल सेंचुरी ने एक बार फिर प्रदेश का देश में मान बढ़ाया है। यह उपलब्धि वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वर्ष 2019 में किए गए सर्वे के बाद मिली है। 80 के दशक में चंबल में मात्र 46 और देश में महज 96 घडिय़ाल बचे थे। जबकि विश्व में इनकी संख्या 200 के करीब थी। चंबल में वर्ष 2019 की गणना में 1255 घडिय़ाल पाए गए थे। वन विभाग का दावा है कि इस वक्त चंबल में घडिय़ालों की संख्या 1876 का है। वर्ष 2020 की जलीय जीव गणना का काम अगले महीने से शुरू हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि विश्व में जलीय जीव घडिय़ाल के विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाने के बाद अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए वर्ष 1978 में चंबल सेंचुरी की स्थापना की गई थी। मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान के धौलपुर, बूंदी और सवाईमाधोपुर जिलों में फैली चंबल नदी में घडिय़ालों की वंशवृद्धि तेजी हुई। इससे सेंचुरी स्थापना के समय करीब 100 से कम घडिय़ाल वाली चंबल में अब आंकड़ा 1876 तक पहुंच गया है। हालांकि वर्ष 2007-08 में चंबल मेें 100 से ज्यादा घडिय़ालों की संदिग्ध हालात में मौत के बाद सेंंचुरी के प्रबंधन पर सवाल उठे थे, लेकिन इसके बाद परिस्थितियों को सुधार लिया गया। चंबल सेंचुरी की स्थापना के समय चंबल में महज 46, देश में 96 और दुनिया में केवल 200 घडिय़ाल थे। मप्र, राजस्थान और उत्तरप्रदेश राज्यों से जुड़ी चंबल सेंचुरी का मुख्यालय मुरैना में है। यहां देवरी स्थित घडिय़ाल संरक्षण केंद्र ने इनकी संख्या वृद्धि में बेहद सकारात्मक भूमिका निभाई। हर साल मार्च-अप्रैल में घडिय़ालों के 60 प्रतिशत अंडे विभागीय कर्मचारी समेटकर मध्य प्रदेश के मुरैना देवरी केंद्र पर लाते हैं। यहां उनका संरक्षण किया जाता है। बच्चे निकलने के बाद 3 साल तक संरक्षण किया जाता है। लंबाई 1.20 मीटर होने के बाद उन्हें चंबल में स्वच्छंद विचरण के लिए छोड़ दिया जाता है। दुनिया में भारत के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में ही घडिय़ाल पाए जाते हैं।
शुद्ध, स्वच्छ और गहरा पानी संरक्षण का आधार
चंबल नदी किसी बड़े शहर के किनारे से नहीं बहती। ज्यादातर जंगल क्षेत्र से बहने के कारण इसका पानी शुद्ध और स्वच्छ होने के साथ गहरा भी है। यह परिस्थतियां घडिय़ाल संरक्षण में बेहद अनुकूूल साबित होती हैं। चंबल में एबी रोड पर राजघाट और उसके आसपास घडिय़ालों को कभी स्वच्छंद विचरण करते देखा जा सकता है। हालांकि इन दिनों सर्दी की वजह से दिन में टापुओं पर धूप सेंकते हुए भी देखा जा सकता है।
इनका कहना….
वर्ष 2019 में हुई गणना के बाद चंबल में सर्वाधिक 1255 घडिय़ाल पाए गए थे। इसी आधार पर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने आंकड़े जारी किए थे। यह खुशी की बात है। इस समय तो घडिय़ालों की संख्या 1876 के करीब होना बताई जा रही है।
राजीव तोमर, मानद वन्य जीव प्रतिपालक, धौलपुर।
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