क्या है हालात इस मार्ग पर चलने वाले दैनिक यात्रियों ने बताया कि अनेक बसों में उम्रदराज चालकों को तैनात किया गया है। कोई भी चालक परिचालक वर्दी पहनना तो दूर वर्दी के बारे में जानता तक नही है। उम्रदराज और युवा चालक भी चलती बसों में बीड़ी सुलगाने में कोई कमी नहीं छोड़ते। ऐसे में यात्रियों के जीवन पर संकट मंडराता रहता है। वहीं इन खटारा बसों में चालक केबिन ओर बस के बीच की विण्डो खुली होने से बीड़ी का धुंआ सवारियों के लिए घुटन पैदा करता है। पर कहें तो आखिर किस्से कहें।
बसें गंदी और सफर में आती है दुर्गंध बसों में सिर्फ मोटे कूड़े को झाडू लगाकर सफाई की इतिश्री कर दी जाती है। बसों की हालात देखकर लगता है कि इन्हें कभी बाहर से धोया तक नहीं जाता। बसें लगातार डिपो में जाती है लेकिन अधिकांश की सीटें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हंै। खिड़कियां या तो है ही नहीं या उनके लॉक नहीं लगते जिससे सर्दियों में ठंडी हवा और गर्मियों में लू तो बारिसों में पानी के झोंके यात्रियों को खासे परेशान करते हैं। बारिश या धुन्ध में चालकों को सामने का शीशा साफ करने के लिए बसों में वाइपर तो हैं ही नहीं। भले ही चालक को दिखे या न दिखे। लेकिन अधिकारियों का इन सबको दरकिनार करने से यात्रियों की जान सांसत में अटकी रहती है।
फस्र्ट एड बॉक्स तक नहीं किसी भी बस में फस्र्ट एड बॉक्स नही है जो किसी यात्री के चोटिल होने पर प्राथमिक चिकित्सा दी जा सके। बसों के क्षतिग्रस्त होने से लोग इन बसों में प्राय: चोटिल होते रहते हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें प्राथमिक चिकित्सा तो दूर पट्टी तक उपलब्ध नहीं होती।
आखिर किसे करें शिकायत पीडि़त परेशान यात्री इन सब पीड़ा की शिकायत भी करें तो आखिर किससे करें। बसों में न शिकायत पेटिका है और न ही उसमे शिकायत पंजिका। निगम प्रबन्धन ने जो नम्बर यात्रियों की सुविधा के लिए लिखवाए है वे भी चालक परिचालकों ने या तो खुरच दिए है या पेंट उखडऩे से मिट गए है। इन हालात में यात्री खुद को बेबस महसूस करके दर्द को सहकर चुपचाप चले जाते हैं।