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प्रशासनिक व राजनीतिक प्रयास की कमी से रेल लाइन का सपना अधूरा

locationडिंडोरीPublished: May 25, 2023 12:33:13 pm

Submitted by:

shubham singh

25 वर्षों में नहीं बदली जिले की तस्वीर, भविष्य की अपेक्षाओं में जीवन जी रहे जिलेवासी

Due to lack of administrative and political effort, the dream of railway line remains incomplete.
Due to lack of administrative and political effort, the dream of railway line remains incomplete.

डिंडोरी. जिले के गठन के 25 वर्ष पूर्ण होने पर गुरुवार को रजत जयंती वर्ष मनाया जाएगा। देश में आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी बैगा जनजाति बाहुल्य जिलो में दूसरे स्थान पर आता है। ऊंची नीची पहाडियों के बीच बसे डिंडोरी के मुख्यालय पहुंचने के लिए अन्य जिलों से आने वाले लोगों को जंगलों के बीच से घुमावदार ऊंची नीचे मार्गों से होकर गुजरना पड़ता है। अमरकंटक के बाद मां नर्मदा सबसे पहले डिंडोरी में प्रवेश करती है और लगभग 100 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। इस मायने में भी यह काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
पच्चीस वर्षों में 21 कलेक्टर
जिला गठन के 25 वर्षों में जिले को 21 कलेक्टर मिले हैं। जिले में पहले कलेक्टर के रूप में सी एल एड़मे ने पदभार संभाला था जो लगभग एक महीने बीस दिन कलेक्टर रहे।
वनोपज में अव्वल, नहीं मिल रहा लाभ
चारो तरफ हरे-भरे जंगलो से आच्छादित डिंडोरी जिले के जंगलों में सभी प्रजाति के पेड़ पौधे हैं। यहां निवासरत बैगा जनजाति एवं आदिवासी परिवार के लोगों को वनोपज से अतिरिक्त लाभ होता है। महुआ संग्रहण, गुल्ली बीज संग्रहण, तेंदूपत्ता संग्रहण, चार बीज, हर्रा बहेरा सहित अन्य फल बीजों का संग्रहण कर बेचकर जीवन यापन करते हैं। हालांकि इसका सही दाम नहीं मिल पाता। जिले का काष्ठ दूसरे जिलों में चला जाता है जिससे जिले के लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता।
अन्तर्राष्ट्रीय पहचान, विश्व का सबसे छोटा नेशनल पार्क
शहपुरा तहसील के ग्राम घुघवा स्थित अन्तर्राष्ट्रीय जीवाश्म पार्क है। इसे विश्व का सबसे छोटा अंतर्राष्ट्रीय पार्क भी कहा जाता है। यहां कई जीवाश्म व डायनासोर के जीवाश्म अभी भी विद्यमान है। यह जीवाश्म पार्क जिले को एक अलग ही पहचान दिलाता है।
रोजगार नहीं, मज़दूर कर रहे पलायन
डिंडोरी जिले को गठित हुए 25 वर्ष पूरे हो गए हैं। इन 25 वर्षों में स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराने काई समुचित व्यवस्था नहीं बन पाई। इतने सालों में जिले में उद्योग, फैक्ट्रियां स्थापित नहीं हो सकी। इससे बड़ी संख्या में जिले के मजदूर वर्ग देश के अलग अलग राज्यों में मजदूरी करने पलायन कर जाते हैं। जिले में उद्योग व्यापार बढ़ाने किसी ने पहल भी नहीं की है। जबकि जिले से राज्य सरकार में बसोरी सिंह मसराम, गंगाबाई उरैती, ओमप्रकाश धुर्वे, ओमकार मरकाम केबिनेट स्तर के मंत्री रह चुके हैं। वहीं केन्द्र सरकार में भी जिले के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते मंत्री थे और वर्तमान में भी मंत्री हैं। इसके बाद जिले को कोई ऐसी बड़ी सौगात नहीं मिल पाई। समूचा जिला आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है और जन प्रतिनिधि गंभीर नहीं है।
बांध बने तो नहरें नहीं निकल पाई
जिले में जल संसाधन विभाग ने छोटे-छोटे बांधों का निर्माण करया है लेकिन नहरें बनाने में लीपापोती कर गए। इससे अधिकांश जलाशयों से किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंच रहा है। सिंचाई के लिए पानी न मिल पाने की वजह से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं। जल संसाधन विभाग नहर मरम्मत के नाम पर महज कोरम पूर्ति कर रही है।
रेल लाइन का सपना अभी भी अधूरा
आजादी के 75 साल बाद भी डिंडोरी रेलवे लाइन की सुविधा से वंचित है। यहां के वाशिंदों के लिए रेल लाइन महज एक सपना बनकर रह गया है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और जिला गठन के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती मनाई जा रही है। जिले में रेलवे लाइन के लिए पूर्व में सांसद रहते बसोरी सिंह मसराम एवं कुछ वर्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते ने रेल मंत्री से मिलकर संभावित रेलवे लाइन के लिए पहल की थी पर आज दिनांक तक रेलवे लाइन जिले में पटरी पर नहीं दौड़ पाई है।
नर्मदा नदी की गोद में बसा फिर भी सूखे की चपेट में
नर्मदा नदी की गोद में बसा फिर भी सूखे की चपेट में
जिले को कई मंत्री मिले लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जिले को खास पहचान नहीं दिला सके। जिले में नर्मदा नदी लगभग 100 किलोमीटर से होकर गुजरती है। पूरा जिला ही नर्मदा की गोद में बसा है इसके बाद भी सैंकड़ों गांव आज भी प्यासे हैं, उन्हें पीने का पानी नहीं मिल रहा है। जिले से होकर गुजरने वाली नर्मदा नदी में अब तक एक भी बांध नहीं बन पाए। ऐसें में लोगों को न तो पीने के लिए और न ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो पा रहा है। जब कभी भी बांध निर्माण होते हैं तो राजनैतिक दल इसमें बाधक बनकर सामने आ जाते हैं और विरोध प्रदर्शन शुरु कर देते हैं। जबकि बांध निर्माण समय की जरूरत है अन्यथा आने वाले दिनों में पानी की समस्या की भयावह स्थिति देखनी पड़ सकती है।
सुविधाओं का टोटा, डाक्टरों की कमी
स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल रहा है। स्वास्थ्य उपकरणों के साथ डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। यहां के शासकीय अस्पतालों में आने वाले मरीजों को सीधे रेफर कर दिया जाता है। शासकीय अस्पतालों में महिला चिकित्सकों की संख्या नगण्य है जिसके चलते महिलाओं को समुचित स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पा रहा है।

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