कर्मचारियों ने बताया कि प्रबंधन द्वारा एक स्टाफ नर्स को निगरानी के लिये बैठा दिया गया है। जिसके द्वारा कर्मियों पर बेवजह दबाव बनाते हुये मामूली बातों को लेकर काम से निकालने की धमकी दी जाती है। सफाई कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें जिला चिकित्सालय की साफ सफाई के लिये रखा गया है लेकिन जिस कार्य को स्वीपर से कराना चाहिये उनसे कराया जाता है। अस्पताल में मरीजों द्वारा फैलाई गंदगी उनसे साफ करायी जाती है। यदि विरोध किया जाता है तो उन्हें काम से हटाने की धमकी दी जाती है, मजबूरी वश सफाई कर्मियों को प्रबंधन के निर्देशों का पालन करना पड़ता है और टायलेट भी साफ करना पड़ता है। इतना ही नही काम भी समय से ज्यादा लिया जाता है। जहां पूर्व में आठ घंटे काम लेने के बाद छोड़ दिया जाता था लेकिन अब 12 घंटे सेवा देना पड़ता है। बावजूद इसके भुगतान में बढोत्तरी नही की गई है बल्कि राशि भी कटौती की जा रही है। पूर्व में 5 हजार रूपये दिए जा रहे थे लेकिन पिछले दो माह से रोगी कल्याण समिति के आधीन उन्हें काम करने के दौरान महज 4 हजार 500रु दिये जा रहे है। पीडि़तों ने बताया कि पूर्व में महिला गार्डो की दिन में ड्यूटी लगाई जाती थी लेकिन अब रात में भी उन्हें सेवाएं देनी पड़ती है। जिससे उन्हे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। महिला कर्मचारी इस संबंध में सिविल सर्जन या जिला स्वास्थ्य अधिकारी से आग्रह करने पहुंचती है तो उनके द्वारा समस्या के निदान की बजाय देखरेख के लिये तैनात की गई स्टाफ नर्स से चर्चा करने का हवाला दिया जाता है और हिदायत दी जाती है कि कोई भी शिकायत लेकर उनके पास नही पहुंचेगा अन्यथा काम से निकाल दिया जायेगा। कुल मिलाकर सफाई कर्मचारियों व सुरक्षा गार्डो पर दबाव बनाने के आरोप लगे हैं। प्रबंधन से तंग कर्मचारी बुधवार को केबिनेट मंत्री के बंगला पहुंच अपनी आप बीती बताई। जिस पर केबिनेट मंत्री ने आचार संहिता का हवाला देते हुये चुनाव के बाद उनकी समस्याओं के निदान का आश्वासन दिया है।