डेंगू को ‘ब्रेक बोन’ बुखार के नाम से भी जाना जाता है। तेज सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, जी घबराना, उल्टी आदि लक्षणों के साथ तेज बुखार डेंगू का संकेत हो सकते हंै। संक्रमित मच्छर के काटे जाने के चार से दस दिन के भीतर ये लक्षण पैदा हो सकते हैं। डेंगू को लेकर कई तरह के मिथक प्रचलित हैं, लेकिन उनमें सच्चाई कम और हमेशा की तरह बीमारी को भयावह बनाने के तथ्य ज्यादा शामिल हैं। ऐसे ही १० मिथकों और उनकी सच्चाई पर डालें एक नजर और रहें सतर्क।
मिथक
डेंगू एक संक्रामक बीमारी है और संपर्क से फैलती है।
डेंगू केवल बारिश के मौसम में फैलता है
डेंगू के उपचार के लिए बाजार में टीका उपलब्ध है।
डेंगू फैलाने वाले एडीज मच्छर साफ पानी में पनपते हैं।
इंसानों को डेंगू पूरे जीवन में केवल एक ही बार होता है।
डेंगू के मच्छर हर तरह के मौसम में अंडे दे सकते हैं
डेंगू के एडीज मच्छर ज्यादा ऊंचाई पर नहीं उड़ पाते इसलिए ऊंची इमारतों में रहने वाले सुरक्षित होते हैं।
पपीते के पत्तों का रस व बकरी के दूध से ब्लड प्लेटलेट्स बढ़ाई जा सकती हंै।
सच्चाई
डेंगू इंसानी संपर्क से फैलने वाली संक्रामक बीमारी नहीं है। यह केवल एडीज मच्छर के काटने से फैलती है।
डेंगू वैसे तो किसी भी मौसम में हो सकता है लेकिन इसके मच्छरों को बारिश के बाद का सूखा मौसम पसंद आता है।
डेंगू के उपचार के लिए बाजार में फिलहाल कोई टीका उपलब्ध नहीं है।
डेंगू फैलाने वाले एडीज मच्छर हर तरह के जमा पानी में तेजी से पनपते हैं। इन्हें हर तरह का जमा पानी पसंद होता है।
इंसानों को डेंगू पूरे जीवन में कभी भी और कितनी बार भी हो सकता है।
डेंगू के मच्छर हर तरह के मौसम में अंडे नहीं देते। इन्हें अंडे देने के लिए 16 डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान भाता है।
डेंगू के एडीज मच्छर लिफ्ट और दूसरे साधनों से कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच कर अंडे दे सकते हैं और बीमारी फैला सकते हैं।
वैकल्पिक चिकित्सा के दावों के विपरीत इंसानी शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स तभी बढ़ते हैं जब डेंगू का संक्रमण रिकवरी फेज में पहुंच जाए।
सतर्कता है जरूरी
डेंगू का कोई सटीक इलाज न होने के कारण लोगों के मन में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं। जिसको लेकर वे काफी भयभीत रहते हैं। थोड़ी जानकारी और सतर्कता से इसको गंभीर होने से रोका जा सकता है। जानते हैं इसके बारे में-
कराएं जांच
डेंगू के शुरुआती लक्षण तेज बुखार, सर्दी, सिरदर्द, मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द और उल्टी आदि के रूप में सामने आते हैं। ये लक्षण पीएफ (प्लासमोडियम फाल्सीपेरम) मलेरिया से मिलते-जुलते हैं। जिसके कारण कई बार लक्षणों से इसकी पहचान नहीं हो पाती व मरीज को सही इलाज नहीं मिलता। लिहाजा सात दिनों के बाद स्थिति बिगडऩे लगती है। यदि इस बीच सीबीसी (कंप्लीट ब्लड टेस्ट) जांच करा ली जाए तो डेंगू की पहचान कर इसे गंभीर होने से रोका जा सकता है।
सात दिनों बाद
सात दिनों तक इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन लगातार प्लेटलेट्स गिरने व शारीरिक रूप से कमजोरी आने से सात दिनों के बाद स्थिति गंभीर हो सकती है। ऐसे में इसके लक्षण दो तरह से सामने आ सकते हैं-
1- डीएचएफ (डेंगू रक्तस्रावी बुखार): इसमें मरीज के शरीर पर लाल चकते, नाक, मसूढ़ों व पेशाब में खून आना और हल्की खुजली आदि हो सकती है।
2- डीएसएस (डेंगू शॉक सिंड्रोम): इसमें चेहरे पर पीलापन, लो ब्लडप्रेशर, नब्ज का कमजोर पडऩा, मुंह व होंठ नीले पडऩा आदि समस्याएं हो सकती हैं। कई बार रक्तचाप प्रणाली के कमजोर पडऩे से यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।
डेंगू मच्छर से ऐसे करें बचाव शरीर को पूरी तरह ढंककर रखें।
डेंगू दिन में काटता है इसलिए घर पर दिन में भी बच्चों को सुलाते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
डेंगू में शरीर में पानी की कमी से स्थिति तेजी से बिगड़ती है। इसलिए डेंगू होने व सामान्य स्थिति में भी दिनभर में कम से कम 12 गिलास पानी जरूर पिएं।
सरसों के तेल में कपूर मिलाकर शरीर के खुले हिस्से पर लगाएं।
एस्प्रिन, डिस्प्रिन आदि कोई भी दवा अपनी मर्जी से न लें। तेज बुखार आने पर कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।
उपरोक्तलक्षण होने पर तुरंत जांच कराएं ताकि परेशानी को गंभीर होने से रोका जा सके।