प्रारंभिक अवस्था में इसके कोई खास लक्षण सामने नहीं आते हैं। सामान्य लक्षणों में थकान रहना, खून की कमी, अचानक वजन घटना, बार-बार बुखार आना, पसीना ज्यादा आना, भूख न लगना या थोड़ा खाने पर ही पेट भर जाना या पेट फुलाव आदि हैं। रोग की पहचान के लिए डॉक्टरी सलाह से ब्लड टैस्ट करवाना चाहिए। साथ ही बोनमैरो की बायोप्सी जांच से भी इसका पता चल जाता है।
यह रोग धीरे-धीरे असर दिखाता है। अन्य कैंसर की तरह इसकी भी कई स्टेज हैं। पहली स्टेज शुरुआत के ३-४ साल बाद दिखती है। दूसरी में कैंसर तेजी से बढ़ता है और तीसरी में स्थिति बेकाबू हो जाती है। जब रक्त की कोशिकाएं असंतुलित होकर पूरे शरीर में घुमती हैं तो स्थिति गंभीर हो जाती है।
तिल्ली या लिवर का आकार बढ़ने, रेडिएशन, प्रदूषण, बैक्टीरिया वाले भोजन से जीन खराब और रक्तकोशिकाएं प्रभावित होती हैं। इससे बचने के उपाय क्या हैं?
शुरुआती स्टेज में जांचों से रोग पर काबू पा सकते हैं। ऐसे में इसे डायबिटीज, बीपी की तरह रोज मात्र एक गोली लेने से ही कंट्रोल कर सकते हैं। कीमोथैरेपी व बोनमैरो ट्रांसप्लांट भी करा सकते हैं।