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रोग और उपचार

कहीं आप हाइपोमेनिया से पीड़ित तो नहीं, जानें इसके बारे में

हाइपोमेनिया मन और व्यवहार की वह अवस्था है जिसमें सामान्यतया व्यक्ति का मूड बदलता रहता है और वह विशिष्ट कार्यों के लिए अत्यधिक ऊर्जावान और आत्मविश्वास से भरपूर रहता है।

May 20, 2019 / 02:18 pm

विकास गुप्ता

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हाइपोमेनिया मन और व्यवहार की वह अवस्था है जिसमें सामान्यतया व्यक्ति का मूड बदलता रहता है और वह विशिष्ट कार्यों के लिए अत्यधिक ऊर्जावान और आत्मविश्वास से भरपूर रहता है।

किसी व्यक्ति में थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर सामान्य से अधिक उत्साह, असामान्य उल्लास, चिड़चिड़ापन या अति आत्मविश्वास नजर आए तो उसे तुरंत मनोवैज्ञानिक को दिखाएं या दिखाने की सलाह दें। यह हाइपोमेनिया के लक्षण हो सकते हैं। यह मनोवैज्ञानिक बीमारी है। हाइपोमेनिया मन और व्यवहार की वह अवस्था है जिसमें सामान्यतया व्यक्ति का मूड बदलता रहता है और वह विशिष्ट कार्यों के लिए अत्यधिक ऊर्जावान और आत्मविश्वास से भरपूर रहता है।

ये हैं लक्षण –
चिड़चिड़ापन और आक्रामकता, चरम और तीव्र खुशी की भावना, जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास, बिना सोचे-समझे किसी काम को करना, आत्मविश्वास अत्यधिक बढ़ना, कम नींद में होने के बावजूद फ्रेश अनुभव करना, बातूनी होना और अधिक तेजी से बोलना। इसके अलावा विचारों-ऊर्जा से भरा महसूस करना, स्वयं के महत्त्व की अधिक अपेक्षा रखना, एकाग्रता में कमी, आसानी से विचलित होना और नशे के प्रति झुकाव अधिक होना।

हाइपोमेनिया के कारण –
मस्तिष्क में सिरोटोनिन, डोपामाइन और न्यूरोटेंसिन हार्मोन का अधिक बनना और जेनेटिक कारण इसकी वजह हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य को बाइपोलर डिस्ऑर्डर रहा हो तो हाइपोमेनिया की आशंका रहती है। इसके अलावा उच्च स्तर का तनाव रहना, नींद पूरी न लेना, स्टेरॉएड्स का प्रयोग, दवाएं या अल्कोहल अधिक लेना भी कारण हैं।

आठ उपाय जो दूर करेंगे दिक्कत-
1. अच्छी नींद –
हाइपोमेनिया रोगी को नियमित रूप से अच्छी नींद लेने की कोशिश करनी चाहिए। रात को जल्दी सोएं। आठ से नौ घंटे की नींद लें। सोने के समय नकारात्मक विचारों के बारे में न सोचें।

2. शरीर-सांस पर ध्यान दें –
तनाव कम करने के लिए शरीर और सांस पर ध्यान केंद्रित करें। अक्सर लोग बाहरी शोर-शराबे के कारण अपने शरीर की आवाज को नजरअंदाज करते रहते हैं।

3. नशे से दूरी –
ऐसी स्थिति में रोगी को नशीले पदार्थों से दूरी बनानी चाहिए। नशे से दूर रहने के लिए समय-समय पर काउंसलिंग कराएं।

4. व्यायाम-
व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करें। इससे शरीर एक्टिव होता है, स्फूर्ति आने के साथ तनाव कम होता है। 20 मिनट की वॉक भी अच्छे परिणाम देती है।

5. अच्छी किताबें पढ़ें-
हाइपोमेनिया पर काबू पाने के लिए अच्छी किताबों का अध्ययन करें। इससे बॉडी और मस्तिष्क में स्थायित्व आता है और तनाव कम होता है।

6. शोरगुल वाली जगहों से बचें –
ऐसी जगहों और लोगों से दूर रहने की कोशिश करें जो आपको बहुत उत्तेजित करते हैं। जैसे डिस्को, मॉल, थिएटर आदि भीड़भाड़ वाली जगहों पर ज्यादा जाने से बचें। हाइपोमेनिया से पीडि़त लोग अधिक जोशीले लोगों से दूरी बनाएं।

7. कैफीन से दूरी बनाएं –
कैफीन के कारण कुछ देर तक एनर्जी महसूस होती है, लेकिन इससे शरीर पर काफी नकारात्मक असर पड़ता है। इस रोग से पीडि़त व्यक्ति को कॉफी या डाइट कोक के स्थान पर नींबू पानी या सादा पानी लेना चाहिए।

8. स्क्रीन टाइम को सीमित करें –
ज्यादा टीवी, मोबाइल फोन, आईफोन, आईपॉड का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आपको स्क्रीन टाइम को सीमित करना चाहिए। इससे मन शांत रहेगा और हाइपोमेनिया की आशंका कम रहेगी।

सामान्य तौर पर यह समस्या जेनेटिक कारणों से होती है। कई बार मादक पदार्थ के ज्यादा उपयोग से भी ऐसा होता है। इसका समय पर उपचार न किया जाए तो समस्या जटिल हो जाती है। रोग की शुरुआत में मरीज को कम से कम एक वर्ष तक दवाई लेनी पड़ती है। उचित उपचार न लेने पर फिर से होने की आशंका और भविष्य में डिप्रेशन का खतरा भी रहता है। ऐसे में चिकित्सक एंटीसाइकोटिक मेडिसिन के साथ कुछ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं।

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