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रोग और उपचार

खुद को रखें आर्थराइटिस से दूर, जानें ये खास बातें

ज्यादातर यह समस्या 40 वर्ष से ऊपर के लोगों में देखने को मिलती है लेकिन बदलती जीवनशैली व खानपान के कारण अब यह कम उम्र के लोगों को भी सताने लगी है-

जयपुरApr 14, 2019 / 01:29 pm

विकास गुप्ता

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ज्यादातर यह समस्या 40 वर्ष से ऊपर के लोगों में देखने को मिलती है लेकिन बदलती जीवनशैली व खानपान के कारण अब यह कम उम्र के लोगों को भी सताने लगी है-

आर्थराइटिस की समस्या में जोड़ों में यूरिक एसिड जमने से गांठें पड़ जाती हैं जिसके कारण इनमें दर्द होने लगता है। ज्यादातर यह समस्या 40 वर्ष से ऊपर के लोगों में देखने को मिलती है लेकिन बदलती जीवनशैली व खानपान के कारण अब यह कम उम्र के लोगों को भी सताने लगी है-

रक्तवाहिकाओं में सिकुड़न –
ब्लड वेसेल्स के सिकुड़ने से शरीर में रक्तसंचार ठीक से नहीं हो पाता ऐसे में आर्थराइटिस के साथ-साथ कई बार पुरानी चोट का दर्द भी उभरने लगता है। इसके कारण दर्द पैदा करने वाले केमिकल्स जमा हो जाते हैं, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है और तेज दर्द होता है। इसके अलावा इस मौसम में लोग गर्मी के मुकाबले अधिक तला-भुना व मसालेदार भोजन करते हैं। साथ ही पानी कम पीते हैं जिससे शरीर के विषैले पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते। शारीरिक गतिविधियां कम होने से भी परेशानी बढ़ जाती है।

अलग-अलग प्रकार –
आर्थराइटिस के 100 से भी अधिक प्रकार होते हैं, लेकिन इनमें से ऑस्टियो, रूमेटाइड और जुवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटिस प्रमुख हैं।

ऑस्टियो आर्थराइटिस : यह बेहद आम रोग है और अधिकतर मामलों में उम्र बढ़ने के कारण होता है। इसमें अंंगुलियां, कूल्हे और घुटने सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

रूमेटॉयड आर्थराइटिस : यह ऑटो इम्यून डिजीज है। इसमें रोगी का प्रतिरोधक तंत्र जोड़ों के टिश्यू पर हमला कर देता है। इसका प्रभाव पूरे शरीर के जोड़ों पर पड़ता है। जिससे व्यक्ति को रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कत आती है।

जुवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटिस : यह 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। सामान्य तौर पर आर्थराइटिस जोड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन इससे आंखें, त्वचा और पाचनतंत्र भी प्रभावित होते हैं।

इलाज –
मरीज का उपचार आर्थराइटिस के प्रकार पर निर्भर करता है। आमतौर पर पहले दवाओं के माध्यम से सूजन कम करने का प्रयास किया जाता है। कई प्रकार के आर्थराइटिस में फिजियोथैरेपी बहुत कारगर होती है। इससे अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। अगर आर्थराइटिस शुरुआती चरण में है तो फिजियोथैरेपी और जीवनशैली में परिवर्तन लाकर ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रमुख कारण –
आनुवांशिकता, पहले की चोट, धूम्रपान की लत, किसी तरह का संक्रमण, अधिक वजन, बढ़ती उम्र आदि।

सामान्य लक्षण –
अलग-अलग आर्थराइटिस के विभिन्न लक्षण होते हैं। लेकिन कुछ लक्षण समान रूप से इसके सभी प्रकार में दिखाई देते हैं। जैसे-किसी भी जोड़ में अधिक समय तक दर्द या सूजन, जोड़ों की गतिविधियों में परेशानी होना, मांसपेशियों में अकड़न या दर्द, थकान, हल्का बुखार, खून की कमी, सीढ़यां चढ़ने-उतरने या अधिक दूर तक चलने में तकलीफ होना आदि।

बचाव के तरीके –
इस रोग में कार्टिलेज को नुकसान पहुंचता है। यह 70 प्रतिशत पानी से बने होते हैं, इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
कैल्शियमयुक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, दूध से बने पदार्थ, ब्रोकली, राजमा, मूंगफली, बादाम, टोफू आदि को डाइट में शामिल करें।

जोड़ों की सेहत के लिए विटामिन-सी और डी बहुत जरूरी हैं इसलिए इनसे भरपूर चीजें जैसे स्ट्रॉबेरी, संतरा, फूलगोभी व पत्तागोभी आदि खाएं।
रोजाना थोड़ा समय धूप में भी बिताएं। यह विटामिन-डी का बेहतरीन स्त्रोत है।
वजन अधिक होने से जोड़ों, घुटनों, टखनों और कूल्हों पर दबाव पड़ता है। इसलिए इसे नियंत्रित करने के लिए व्यायाम करें। जिन्हें पहले से ऐसी परेशानी है वे लोग ऐसे व्यायाम से बचें, जिससे जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है।
शराब और धूम्रपान से पूरी तरह तौबा करें।
मौसमी फल और सब्जियों को ज्यादा से ज्यादा खाएं। ये ऑस्टियो-आर्थराइटिस से बचाते हैं।
सर्दियों में जोड़ों को पूरी तरह ढंक कर रखें। यदि दवा लेने के बाद भी दर्द में आराम न मिले तो विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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