ऐसे होता है प्रभाव –
एसएमएस अस्पताल के मनोचिकित्सक के अनुसार उनके पास औसतन रोजाना एक मरीज सोशल मीडिया से जुड़े तनाव के कारण आता है। जिसे उसके माता-पिता या परिवार वाले लेकर आते हैं। आमतौर पर रिश्तेदार की कुछ ऐसी शिकायतें होती हैं।
कम्प्यूटर या स्मार्टफोन के चक्कर में खाने का कोई होश नहीं रहता।
इसने घर से निकलना बंद कर दिया है।
यह चुप रहने लगा है। छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करता है। किसी भी काम में इसका मन नहीं लगता फोन या लैपटॉप न दें तो खाना नहीं खाता या खुद को कमरे में बंद कर लेता है।
कई बार वे हिंसक होकर खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं।
उपचार : डॉक्टर मरीज को सोशल मीडिया से होने वाले मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभाव के बारे में बताते हैं। वे समझाते हैं कि व्यक्ति अपनी दिनचर्या के सभी कामों का समय तय करें। सारे दिन फोन पर लगे रहने से अच्छा है कि वह घर से बाहर के कामों और खेल-कूद में भाग ले जिससे मानसिक तनाव कम होकर शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ सके।