हार्मोन्स के स्तर में बदलाव, विटामिन-ए, डी व आयरन की कमी, सिफलिस और लेप्रोसी भी इसकी वजह बन सकते हैं।क्लेबसिला ओजीना नामक जीवाणु के संक्रमण, वंशानुगत या पूर्व में हुई नाक से जुड़ी कोई सर्जरी जिसमें नाक के अंदर की संरचनाएं व ऊत्तक नष्ट हो गए हैं, तो भी यह रोग हो सकता है।
कई बार नाक के चौड़े होने पर पपड़ी व क्रस्ट के लगातार जमने से सांसमार्ग में रुकावट आ जाती है जो नाक से बदबू आने का कारण बनती है। संवेदनशील और नाजुक कोशिकाओं के कमजोर होने से भी ऐसा महसूस होता है। नाक से बदबू आती है लेकिन खुद मरीज इस बदबू से अनजान रहता है। दूसरों से ही उसे इसका पता लगता है। इसे मर्सी एनोसमिया या ओजिना कहते है। इस वजह से सूंघने की क्षमता में कमी आने के अलावा नाक से खून भी आ सकता है।
खुश्की-सूखी पपडिय़ों से निजात पाने के लिए तेलीय पदार्थ जैसे लिक्विड पेराफीन या ग्लिसरीन नाक में डालते हैं। नाक की सफाई रखना जरूरी होता है। इसके लिए एक निश्चित अनुपात में नमक व मीठा सोडा के मिश्रण से बने एल्केलाइन द्रव्य का इस्तेमाल करते हैं। श्वसन मार्ग खोलने के लिए योग भी कराते हैं। संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। तकलीफ ज्यादा होने पर सर्जरी कर नाक के चौड़े छिद्र को संकरा किया जाता है।