scriptजानें 300 तरह की शल्य चिकित्सा के बारे में | Learn about 300 types of surgery | Patrika News
रोग और उपचार

जानें 300 तरह की शल्य चिकित्सा के बारे में

आचार्य सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। आयुर्वेद में उपचार के लिए सर्जरी की मदद ली जाती है।

Dec 02, 2017 / 08:28 pm

विकास गुप्ता

learn-about-300-types-of-surgery

आचार्य सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। आयुर्वेद में उपचार के लिए सर्जरी की मदद ली जाती है।

सर्जरी को लेकर आम धारणा यही है कि यह एलोपैथी विधा है जबकि शल्य चिकित्सा की शुरुआत हमारे देश में ही लगभग 2600 साल पहले महर्षि सुश्रुत ने की थी। आचार्य सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। आयुर्वेद में उपचार के लिए सर्जरी की मदद ली जाती है।

125 प्रकार के औजार
दुनियाभर में आज भी सुश्रुत की विकसित तकनीक व औजार से सर्जरी की जाती है। उसी तरह से चीरे और टांके लगाए जाते हैं। ‘सुश्रुत संहिता’ में 125 प्रकार के सर्जरी के औजार और 300 से अधिक प्रकार की सर्जरी के बारे में लिखा गया है। इनमें प्लास्टिक सर्जरी, मोतियािबिंद, मधुमेह और प्रसव आदि शामिल है।
इन रोगों में उपयोगी
आयुर्वेद में ब्रेस्ट कैंसर, ट्यूमर, गैंगरीन, डिलीवरी, थायरॉइड, हर्निया, अपेंडिक्स व गॉलब्लैडर संबंधी सर्जरी की जाती हैं।
बेहोश करने के लिए
प्राचीन समय में शल्य चिकित्सा से पूर्व एनेस्थीसिया की जगह मरीज को अल्कोहल दिया जाता था ताकि दर्द न हो। बाद में इसमें अफीम, कोकीन और अन्य दवाइयां मिलाकर इंजेक्शन लगाया जाने लगा। अब अन्य कई आधुनिक दवाइयां विकसित हो गई हैं। आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों पद्धतियों में एक ही तरह का इंजेक्शन लगाया जाता है।

लाभ हैं कई
आयर्वुेदिक सर्जरी भी, एलोपैथिक सर्जरी की तरह लाभदायक है। पाइल्स और भगंदर जैसे रोगों का बिना ऑपरेशन इलाज हो सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में गैंगरीन में पूरा अंग काटने की जगह केवल प्रभावित हिस्सा ही काटा जाता है और इसमें मरीज की रिकवरी जल्दी होती है और सफलता दर भी अधिक है।

शल्य चिकित्सा के बाद
घाव भरने के लिए मरीज को त्रिफला गुग्गल, गंध रसायन, आंवले का चूर्ण, हल्दी मिला दूध व गिलोय से बनी औषधियां देते हैं। यह दर्द कम करके घाव भरती हैं।
उपचार के प्रमुख आठ प्रकार
सुश्रुत ने अपनी संहिता में शल्य चिकित्सा के 8 प्रकारों का वर्णन किया है। उसी विधि से आज भी उपचार किया जाता है।
छेदन कर्म : अपेंडिक्स, ट्यूमर व गॉलब्लैडर की सर्जरी इस विधि से होती है। इसमें बेकार हिस्से को निकाल देते हैं।
भेदन कर्म : इसमें चीरा लगाकर इलाज होता है। मवाद व पेट से पानी निकालने में इसे अपनाते हैं।
लेखन कर्म : घाव की मृत कोशिकाओं को साफ करने के लिए इसका प्रयोग होता है।
वेधन कर्म : इस विधि में सुई से पेट या फेफड़ों में भरा पानी बाहर निकालते हैं।
ऐष्ण कर्म : इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में प्रोबिंग कहते हैं। साइनस और भगंदर की सर्जरी इससे होती है।
अहर्य कर्म : खराब दांत, पथरी व शरीर के दूसरे बेकार हिस्से को इस विधि से बाहर निकालते हैं।
विश्रव्य कर्म : शरीर के हिस्सों में बने मवाद को निकालने के लिए इसका प्रयोग होता है। इसमें पाइप की भी मदद ली जाती है।
सीवन कर्म : आयुर्वेद सर्जरी में अंतिम प्रक्रिया सीवन (सीव्य) होती है। इसमें घाव पर टांके लगाए जाते हैं।

Hindi News/ Health / Disease and Conditions / जानें 300 तरह की शल्य चिकित्सा के बारे में

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो