फिल्टर ब्लॉक होने से आती है अंदरूनी सूजन –
ग्लूमेरुलो नेफ्राइटिस प्रतिरोधी तंत्र की बीमारी है जिसमें एंटीबॉडी व एंटीजन से होने वाला प्रभाव सीधे किडनी पर होता है। इससे छलनी के सुराख ठीक से खुल नहीं पाते, ब्लॉक हो जाते हैं या फिर इनके टूटने से इनमें गेप बढ़ जाता है जो इनमें सूजन का भी कारण बनता है। इससे बाहरी तत्त्व शरीर से निकलने के बजाय धीरे-धीरे अंदर इकट्ठा होने लगते हैं और जमाव से सुराख खुलने पर लाल रुधिर कणिकाएं व प्रोटीन बाहर निकलने लगता है। इससे व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है।
लक्षण : आंखों के आसपास व पैरों में सूजन
एक हफ्ते से ज्यादा समय तक शरीर में खासकर आंखों के आसपास या पैरों में सूजन, पेट में दर्द, कई बार नकसीर आना, यूरिन में ब्लड या प्रोटीन का झाग के रूप में निकलना व फेफड़ों में तरल के जाने से खांसी आने जैसी तकलीफ हो सकती हैं। युवाओं (20-30 वर्ष) में इसके कारण ब्लड प्रेशर बढ़ने की समस्या भी देखने में आती है।
180 लीटर रक्त को छानते हैं दोनों किडनी के बीस लाख फिल्टर।
20 वर्ष के युवाओं में इस रोग के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ना प्रमुख लक्षण है।
ये बातें रखें ध्यान –
यूरिन में झाग आने व इसके रंग में बदलाव होने जैसे लक्षणों पर ध्यान दें, बिल्कुल नजरअंदाज न करें।
किडनी संबंधी रोग की फैमिली हिस्ट्री रही हो या किडनी कमजोर है तो साल में एक बार यूरिन टैस्ट जरूर करवाना चाहिए।
ग्लूमेरुलो नेफ्राइटिस बीमारी की वजह से किडनी फेल्योर के अलावा हृदयाघात, हाई ब्लड प्रेशर, तनाव, यूरिन संक्रमण शरीर में मिनरल असंतुलन और अन्य कई इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है।
जांच : बायोप्सी से पता लगाया जाता-
सबसे पहले यूरिन टैस्ट कर रोग की पहचान की जाती है। इसके बाद रोग की गंभीरता और स्थिति को जानने के लिए किडनी बायोप्सी की जाती है। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही सही दवा और उसकी मात्रा तय की जाती है।
सावधानी बरतें –
शरीर का वजन सामान्य बनाए रखने के लिए संतुलित डाइट लें। इसमें नमक, पोटेशियम और प्रोटीन की मात्रा को शरीर की जरूरत व कदकाठी के अनुसार लें। धूम्रपान आदि से दूरी बनाएं। ताजा मौसमी फल व सब्जियां खाएं।
इलाज : इम्युनिटी बैलेंस करने वाली दवाएं देते हैं –
कुछ मरीजों में इस बीमारी के लक्षण सामने नहीं आ पाते जिससे रोग की पहचान देरी से होती है। ऐसे में मरीज गंभीर अवस्था में डॉक्टर के पास पहुंचता है। इस स्थिति में मरीज को इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं दी जाती हैं ताकि शरीर की इम्युनिटी बरकरार व संतुलित रहे।