अधिकतर यह समस्या जैनेटिक यानी परिवार के किसी सदस्य को पहले से होने पर होती है। इसके अलावा माइग्रेन मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों और कोशिकाओं में परिवर्तन से भी होता है। ये परिवर्तन भूखा रहने, कम या ज्यादा सोने, शारीरिक व मानसिक तनाव, तेज गर्मी, तेज रोशनी व शोर, तीव्र गंध, हार्मोनल बदलाव व चीज, पनीर, चॉकलेट, नूडल्स आदि ज्यादा खाने से हो सकते हैं।
नहीं, यह मानसिक बीमारी नहीं है बल्कि एक शारीरिक रोग है जो मानसिक तनाव की वजह से बढ़ सकता है। कई बार किसी-किसी मरीज को ये आशंका होती है कि उसके दिमाग में ट्यूमर तो नहीं है, ऐसे में उनका सीटी स्कैन या एमआरआई करवा सकते हैं।
15-50 वर्ष की उम्र तक किसी को भी यह समस्या हो सकती है। हालांकि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इस रोग के होने की आशंका तीन गुना अधिक होती है।
यह खत्म होने वाला रोग नहीं पर इसका इलाज संभव है। डॉक्टरी सलाह से नियमित दवाएं लेने पर यह कंंट्रोल हो जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति एक डायरी में दर्द के समय (कब-कब और कितनी बार) के साथ उस दौरान के खानपान, घूमने-फिरने (जैसे तेज धूप, रोशनी व गर्मी) आदि को लिखकर दर्द के कारण जांच सकता है। जिससे भविष्य में उन कारणों से होने वाली परेशानी से बच सके। ध्यान व योगा भी करें।