प्रेग्नेंसी : इस अवस्था में महिला की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा मजबूत नहीं होती। साथ ही त्वचा भी काफी संवेदनशील हो जाती है। इसलिए होली के दौरान कैमिकल युक्त रंगों के प्रयोग से बचें।
लाल रंग : इसमें मौजूद मर्करी सल्फेट महिला के शरीर में प्रवेश कर गर्भनाल के माध्यम से भू्रण के विकास को प्रभावित करता है जिससे बच्चे में शारीरिक विकृति या नर्व सिस्टम डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है।
काला रंग : इस रंग में मौजूद लीड ऑक्साइड गर्भनाल के जरिए गर्भस्थ शिशु तक पहुंचकर मिसकैरेज, प्री मैच्योर डिलीवरी या बच्चे के कम वजन का कारण भी बन सकता है।
नीला रंग : इसे बनाने के लिए पू्रसिअन ब्लू का प्रयोग किया जाता है जिससे गर्भवती महिला को स्किन एलर्जी हो सकती है।
हरा रंग : कॉपर सल्फेट होने के कारण इससे गर्भवती महिला की आंखों में जलन, एलर्जी, आंखों से पानी आना और लालिमा दिखने जैसे लक्षण हो सकते हैं इसलिए इनसे परहेज करें। इतना ही नहीं यदि यह रंग गर्भनाल के जरिए बच्चे तक पहुंच जाए तो उसका विकास प्रभावित हो सकता है।
डॉक्टरी राय: गर्भवती महिलाएं कामकाज के दौरान खानपान पर ध्यान दें वर्ना एसिडिटी की समस्या हो सकती है। थकान लगे तो आराम करें और जहां गीली होली खेली जा रही हो वहां जाने से बचें क्योंकि ऐसे में पांव फिसलने का डर बना रहता है।