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रोग और उपचार

Prostate Gland – हार्मोनल बदलाव से बढ़ता ग्रंथि का आकार

यूरिन करने में दिक्कत को नजरअंदाज करने पर गुर्दे में संक्रमण की आशंका अधिक

जयपुरJul 26, 2019 / 05:44 pm

युवराज सिंह

prostate gland

Prostate Gland – हार्मोनल बदलाव से बढ़ता ग्रंथि का आकार

प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना 40 वर्ष की उम्र के बाद ज्यादातर पुरुषों में आम समस्या बन जाती है। इस वजह से यूरिन करने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में आयुर्वेद में बिना सर्जरी किए इस दिक्कत का इलाज संभव हो सकता है। जानते हैं रोग के कारण, लक्षण व अन्य प्रमुख जानकारी के बारे में –
उम्र बढ़ने के साथ आकार बढ़ना सामान्य प्रक्रिया
प्रोस्टेट पुरुषों में पाई जाने वाली ग्रंथि है जो मूत्राशय के नीचे, मलाशय के आगे और मूत्र मार्ग के चारों ओर स्थित होती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ इस ग्रंथि का आकार बढ़ना एक सामान्य प्रक्रिया है। इसका सामान्य वजन 7-18 ग्राम होता है।
मुख्य कारण
40 वर्ष की उम्र के बाद प्रोस्टेट का आकार बढ़ना सामान्य विकार है। लेकिन 60 वर्ष की उम्र के बाद इस ग्रंथि के बढ़ने और इसमें सूजन के मामले ज्यादा सामने आते हैं। आमतौर पर इसके प्रमुख व ठोस कारण अज्ञात हैं। लेकिन शरीर में होने वाला हार्मोनल बदलाव रोग का खतरा बढ़ाता है।
ये हैं लक्षण
यूरिन करने में तकलीफ, बार-बार यूरिन की इच्छा या रोक न पाना, यूरिनरी ब्लैडर पूरी तरह से खाली न होना, ग्रंथि में सूजन, बूंद-बूंद यूरिन आना, रात्रि के समय यूरिन के लिए बार-बार जाना परेशानियां होती हैं। कई बार ग्रंथि बढ़ने से यूरिन बंद हो जाता है।
लापरवाही से कैंसर व किडनी में संक्रमण की आशंका
लक्षणों को बार-बार नजरअंदाज करना व समय पर इलाज न लेना भविष्य में प्रोस्टेट कैंसर और किडनी में संक्रमण की आशंका बढ़ा देता है। ऐसे में 40-50 की उम्र के बाद नियमित जांचें कराते रहना चाहिए।
अपनाएं ये उपाय
– पांच ग्राम गोखरू और दस ग्राम कांचनार की छाल को दो गिलास पानी में उबालें। इसकी मात्रा एक चौथाई रहने के बाद छानकर ठंडा करें। सुबह-शाम पीने से फायदा होता है।
– चंद्रप्रभावटी एवं वृद्धिवाधिका वटी की दो-दो गोली को सुबह और शाम के समय लेने से भी आकार में बदलाव होता है।
कांचनार और गुग्गुलू की दो-दो गोली सुबह-शाम लेने से भी लाभ होता है। वरुण, पुनर्नवा, मकोय और कांचनार के अर्क को गोमूत्र के साथ लिया जा सकता है।
योग भी है सहायक
आनुवांशिक कारण होने की स्थिति के अलावा यदि इस रोग की शुरुआती स्टेज है तो कपालभाति, गोमुखासन, सिद्धासन व मूलबंधासन कर सकते हैं। इन्हें कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है।

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