रोग के तीन प्रकार –
वैसे तो यह बीमारी आंत के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है। लेकिन 75 प्रतिशत लोगों में यह छोटी आंत के अंतिम छोर और सीकम (अंधान्त्र) में खासतौर पर होती है। इस रोग के लक्षण क्रोंस डिजीज (आंतों की सूजन) जैसे होते हैं। प्रारंभिक अवस्था में इसका इलाज न होने पर यह जानलेवा भी हो सकती है। आंतों में टीबी तीन प्रकार से होती है-
अल्सरेटिव –
इसमें आंतों में अल्सर की स्थिति बनती है। यह 60 प्रतिशत मरीजों मेंं पाई जाती है।
हाइपरट्रॉफिक –
आंतों की वॉल का मोटा व सख्त होने से रुकावट आना। यह 10 फीसदी मरीजों में होती है।
अल्सरोहाइपरट्रॉफिक-
आंतों में अल्सर व रुकावट दोनों होती है। 30 प्रतिशत मरीजों में ये मामले देखने में आते हैं।
लक्षण–
वजन घटना व खूनी दस्त, पेटदर्द, कब्ज की समस्या, बुखार रहना, भूख कम लगना, कमजोरी आना, पेट में गांठ बनना आदि इसके लक्षणों में शामिल हैं। लक्षण दिखते ही गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें।
सर्जरी-
करीब 70 फीसदी मरीज दवाओं से ठीक हो जाते हैं। तीस फीसदी रोगी ऐसे हैं जिनमें बैक्टीरिया मरने के बाद भी रह जाने से आंतों में रुकावट आती है। इसे दूर करने के लिए एंडोस्कोपी या सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
जांच – खून की जांच, सीने व पेट का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, बेरियम स्टडी, सीटी स्कैन, मेंटॉक्स टैस्ट से भी आंतों में टीबी की जांच की जाती है। इनके अलावा कोलोनोस्कोपी और बायोप्सी से रोग की स्थिति का पता लगाते हैं। कुछ मरीजों में कै प्सूल एंडोस्कोपी और एंटीरोस्कोपी की जरूरत पड़ती है। छोटी आंत की जांच करते हैं।
क्या है इलाज?
आंतों में टीबी के मरीज ज्यादातर दस्त से परेशान होते हैं। ऐसे में शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इसलिए सबसे पहले शरीर में पानी की पूर्ति करते हैं।
दवाइयां –
शरीर मेंं तरल व मिनरल्स की पूर्ति के लिए ओआरएस घोल देते हैं। एंटीट्यूबरकुलर दवाएं दी जाती हैं ताकि बैक्टीरिया नष्ट होकर संक्रमण को खत्म किया जा सके। जो मरीज उल्टी के कारण दवाएं नहीं ले पाते उन्हें इंजेक्शन के जरिए दवाइयां दी जाती हैं।
डाइट-
खानपान में प्रोटीनयुक्तदालें, सोयाबीन अधिक लें। सूप, आलू, चावल व केला डाइट में शामिल करें। इलाज की शुरुआत में दूध उत्पाद से बचें, ये दस्त का कारण बनते हैं। कॉफी, चाय, कोल्डड्रिंक्स से बचें, ये दस्त व पेटदर्द को बढ़ाते हैं। अल्कोहल न लें।
जटिलताएं
इलाज समय रहते न हो तो रोग गंभीर हो सकता है। ऐसे में आंतों में अंदरुनी ब्लीडिंग, रुकावट आना, छेद होना, इसकी दीवार का फट जाना, कुपोषण और आंतों की टीबी का दूसरे अंगों में फैलना जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।