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कोटा

हेरिटेज विंडोः नदी में खेली जाती थी होली

दरबार चम्बल नदी से नावड़े की होली खेलने निकलते थे। गढ़ पैलेस के पीछे चम्बल नदी पर पहुंच कर नाव में बिराजमान होकर होली खेलने निकलते थे। दरबार पूरे लाव लश्कर के साथ होली खेलने के लिए रवाना होते थे। नदी के दोनों ओर कोटा शहर की जनता दरबार से होली खेलने के लिए तैयार रहती थी।

कोटाMar 11, 2017 / 05:12 pm

​Vineet singh

Holi was played on the river

Holi was played on the river

होली प्रेम और आपसी सौहार्द का पर्व है। एक एेसा त्योहार, जिसमें लोग ऊंच-नीच का अंतर त्याग कर एक-दूसरे के प्रेम का रंग लगाया करते हैं। वर्तमान समय मेंं होली मनाने के तरीके में परिवर्तन हो चुका है। एक जमाना था-जब कोटा दरबार और प्रजा दोनों एक साथ होली खेला करते थे। होली के दिन प्रजा को पूरी छूट हुआ करती थी दरबार पर गुलाल, रंग फेंकने की। दरबार स्वयं प्रजा के बीच होली खेलने जाया करते थे। 
 इतिहासविद फिरोज अहमद बताते हैं कि कोटा रियासत में महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय का शासन काल (1889-1940) आधुनिक कोटा के निर्माण का काल रहा। उन्होंने 1896 में कोटा रियासत की बागडोर संभाली। 27 दिसम्बर 1940 में उनका देहांत हुआ। उनके शासन काल में कोटा शहर में होली पर्व बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता था। गढ़ पैलेस में परम्परागत तरीके से होलिका दहन होता था।
 दूसरे दिन धुलंडी के दिन महाराव दरबारियों व प्रजा के साथ होली खेलने के लिए हाथियों पर बैठ कर बाजार में निकलते थे। गढ़ पैलेस से रामपुरा तक महाराव का होली का जुलूस निकलता था। इस दौरान लोग केसूला के फूलों का रंग, गुलाल, अबीर लगाकर महाराव के साथ होली खेलते थे। 
रामपुरा में दानमल जी की हवेली के बाहर जमकर होली खेली जाती थी। जहां पर सेठ केसरी सिंह महाराव के रंग गुलाल लगाते थे। महाराव के जुलूस में रंग की बौछार करने की मशीन भी साथ चलती थी। जिससे हवेलियों, छतों पर बैठी प्रजा पर रंगों की बौछार की जाती। शाम को गढ़ पैलेस में दरीखाना लगता। जिसमें दरबार चाकरों को भेंट देते। इस दौरान किन्नरों के सरदार द्वारा होली की बधाइयां गाई जाती। किन्नरों द्वारा नाथ्या पंडा (होली के मजाकिया गीत) गाए जाते थे।
नदी में खेली जाती थी नावड़े की होली

दूसरे दिन दरबार चम्बल नदी से नावड़े की होली खेलने निकलते थे। गढ़ पैलेस के पीछे चम्बल नदी पर पहुंच कर नाव में बिराजमान होकर होली खेलने निकलते थे। दरबार पूरे लाव लश्कर के साथ होली खेलने के लिए रवाना होते थे। नदी के दोनों ओर कोटा शहर की जनता दरबार से होली खेलने के लिए तैयार रहती थी। इस दौरान दरबार के नावड़े में लगी मशीन से प्रजा पर रंगों की बौछार की जाती थी।
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