एक सैंपल से कई जांचें
सेंट्रलाइज सैंपल कलेक्शन के तहत कोई व्यक्ति किसी समस्या को लेकर अस्पताल पहुंचता है तो उसे एक बार सैंपल देना होता है। इसी सैंपल को अलग-अलग टैस्ट ट्यूब में डालकर विभागों में भेजते हैं। इस सुविधा से रोगी को बार-बार सुई की चुभन से परेशान और सैंपल देने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है।
भोजन के बाद टैस्ट
भूखे पेट और कुछ खाने के बाद मुख्य रूप से ईएसआर, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल की जांच होती है। इससे शरीर में कुछ भी खाद्य पदार्थ न होने या इनकी उपस्थिति में शरीर में क्या बदलाव हैं, जानकारी मिलती है। इनके आधार पर एक्सपर्ट रोग की पॉजिटिव व नेगेटिव रिपोर्ट तैयार करते हैं।
गड़बड़ी न हो
कई बार देखा जाता है कि एक ही दिन में रोगी एक तरह की जांच अलग-अलग लैब से करवाता है जिसकी जांच रिपोर्ट एक दूसरे से भिन्न होती है। इसका प्रमुख कारण कई बार सैंपल कलेक्शन में बरती गई लापरवाही, जांच के लिए प्रयोग हुए सॉल्युशन या इंजेक्शन में किसी तरह की खराबी मुख्य वजह है। मशीन में किसी तरह की तकनीकी खराबी से भी गलत रिपोर्ट बनने के मामले सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में एक बार डॉक्टर से मिलने के बाद अच्छी लैब से क्रॉस चेक जरूर करवाना चाहिए।
इसलिए सुबह जांच
यूरिन जांच सुबह इसलिए कराते हैं क्योंकि रातभर यूरिन ब्लैडर में भरा रहता है। उसकी जांच होने पर बैक्टीरिया का पता आसानी से चल जाता है। इसी तरह टीबी की जांच के लिए बलगम का सैंपल सुबह उठते ही निकालकर जमा किया जाता है। इसका कारण उस सैंपल में किटाणु पर्याप्त मात्रा में आ जाते हैं जिनकी पहचान जांच के बाद आसानी से हो जाती है।
स्टे्रन बदलने से फैलती बीमारी
मिशिगन स्टे्रन वायरस की प्रकृति में बदलाव से रोग तेजी से फैलते हैं क्योंकि उस वक्त उसकी रोकथाम व इलाज के लिए कोई उचित व्यवस्था व दवा नहीं होती। इंफ्लूएंजा वायरस में जेनेटिक बदलाव को एंटीजेनिक ड्रिफ्ट व दो अलग स्ट्रेन के मिलने से बने नए वायरस की प्रक्रिया को एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। मौसमी बदलाव से लोगों की इम्युनिटी घटती है जिसके लिए वैक्सीन लगवाते हैं। यह स्ट्रेन संबंधी दिक्कतों की आशंका घटाती है।
लैब टैस्ट
वायरस लैब : इसमें वायरस के म्यूटेशन व एंटीजेनिक बदलाव (प्रकृति) को परखा जाता है। इसके लिए लैब में इन वायरस की सिक्वेंसिंग कर इनके दुष्प्रभावों के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।
ड्रग रेसिस्टेंस सर्विलांस : इससे रोगी में दवा के असर व दवा की डोज का पैमाना तय होता है। इससे दवा के असर के अलावा रोगी की इम्युनिटी के हिसाब से दवा का क्या स्तर होगा, का पता लगाते हैं।
मल्टीप्लेक्स पीसीआर : इससे एक बार में एक सैंपल से कई वायरस को एकसाथ देख सकते हैं। दिमागी बुखार, जेई व स्वाइन फ्लू वायरस की जांच में सहायक।
बायो फायर : इससे एक घंटे में १२-२० प्रकार के बैक्टीरिया की पहचान करते हैं। यह जांच थोड़ी महंगी है व रोगी को इसके लिए १२ हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
ऑटोमेटेड सिस्टम : करीब ६०० रु. के खर्च के बाद जांच रिपोर्ट तुरंत मिलती है। ये वेंटिलेटर, आईसीयू या गंभीर रोगियों के इलाज के दौरान उपयोगी है। मैनुअल जांच के लिए रोगी को ७५ रु. खर्च करने होते हैं लेकिन रिपोर्ट २४ से ३० घंटे में मिलती है।