लिवर के ठीक नीचे थैलीनुमा अंग होता है। यह शरीर में पित्त इकट्ठा करता है। लिवर से निकलने वाला 70 प्रतिशत पित्त सीधे छोटी आंत में जाता है व 30 प्रतिशत पित्ताशय में जमा होता है। अधिक तला-भुना व मसालेदार भोजन लेने पर पित्ताशय में जमा पित्त छोटी आंत में जाकर गरिष्ठ भोजन को पचाने में मदद करता है।
इसका सबसे बड़ा कारण पित्ताशय में कोलेस्ट्रॉल की अधिकता होता है। अधिक तलाभुना व मसालेदार भोजन करने से लिवर द्वारा रिलीज कोलेस्ट्रॉल की मात्रा पित्त में बढ़ती जाती है जो पथरी का कारण बनती है। इसके अलावा कई बार पित्त में बिलरुबीन व नमक की अधिक मात्रा, शरीर में खून की कमी व आनुवांशिक कारणों से भी यह समस्या हो सकती है। छोटे बच्चों में यह समस्या ज्यादातर आनुवांशिक कारणों से या पोषक तत्वों के अभाव में खून की कमी यानी एनीमिया से होती है।
इस परेशानी को लंबे समय तक दर्दनिवारक दवा खाकर दबाना नहीं चाहिए क्योंकि पथरी का आकार 3 सेंटीमीटर से अधिक होने या फिर परेशानी को 10 वर्ष से अधिक समय बीतने पर यह कैंसर का रूप ले सकती है।
शुरुआत में इसके लक्षण अपच, एसिडिटी, जी घबराना व उल्टी आदि के रूप में सामने आते हैं। जिससे इसकी पहचान नहीं हो पाती। जब पथरी बढऩे लगती है तो पित्ताशय की परत बढ़ जाती है। इससे पेट में नाभि के ऊपर दायीं ओर दर्द होता है। कई बार अधिक समय तक इसकी अनदेखी से पथरी पित्ताशय से निकलकर पाइपलाइन में फंस जाती है जिससे रोगी पीलिया से ग्रसित हो जाता है।
मोटापे में कोलेस्ट्रॉल की अधिकता। गर्भनिरोधक दवाओं, हार्मोन संबंधी रोगों व प्रेग्नेंसी में इलाज के दौरान एस्ट्रोजन की अधिकता। तेजी से वजन कम होने की स्थिति में लिवर ज्यादा कोलेस्ट्रॉल रिलीज करने लगता है जिससे गॉलब्लैडर में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।
सामान्यत: इसका पता सोनोग्राफी से चल जाता है। अधिक परेशानी होने पर कई बार डॉक्टर एमआरसीपी जांच (एक तरह की एमआरआई) करवाते हैं। सर्जरी है इलाज
पित्ताशय में पथरी एक हो या अधिक, इलाज सर्जरी ही है। इसमें पित्ताशय को बाहर निकाल दिया जाता है जिससे स्वास्थ्य पर फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इसके बाद लिवर का पित्त सीधे छोटी आंत में पहुंचने लगता है जिससे भोजन पचाने का काम सामान्य रूप से होता है। सर्जरी के बाद पथरी की पैथोलॉजी जांच करानी चाहिए क्योंकि कैमिकल एनालिसिस से पथरी के कारण का पता लगाकर भविष्य में अन्य रोगों के खतरे को कम किया जा सकता है।
– अधिक तले-भुने व गरिष्ठ भोजन के बजाय हल्का व संतुलित आहार लें। नियमित योग व व्यायाम करें।
– अधिक वजन वाले लोग घी, मक्खन आदि से परहेज करें व फैट फ्री दूध लें।
– शरीर में पानी की कमी न होने दें। इसके लिए दिनभर में 3-4 लीटर पानी पिएं।
– अंकुरित अनाज, दालें, राजमा, सेब, पपीता, केला आदि फाइबरयुक्त चीजें लें।