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हार्टबीट तेज हो जाना और पैरों का कांपना है पैनिक अटैक

पैनिक अटैक के ज्यादातर मामलों में मरीज इसे समझ नहीं पाता क्योंकि ऐसी स्थिति में वह हड़बड़ा जाता है।

जयपुरJan 30, 2018 / 04:43 am

शंकर शर्मा

panic attack

पैनिक अटैक के ज्यादातर मामलों में मरीज इसे समझ नहीं पाता क्योंकि ऐसी स्थिति में वह हड़बड़ा जाता है। इसके अलावा आसपास के लोग भी इसे कई दूसरी बीमारी जैसे हार्ट अटैक या मिर्गी से जोडक़र भ्रमित हो जाते हैं। जानते हैं इसके बारे में…

लक्षण
अचानक किसी बात का डर हावी होने लगना।
तनाव के साथ दिल की धडक़न का असामान्य गति से तेज होने लगना।
सीने में दर्द और बेचैनी।
उल्टी और पेट खराब हो जाना।
हार्ट बीट नॉर्मल न रहकर तेज हो जाना, पैरों का कांपना।
जोर-जोर से दिल धडक़ने लगना।
छोटी-छोटी बातों पर तनाव होने लगना।
ठंड के मौसम में भी गर्मी लगने लगना।
अचानक पूरे शरीर में सिहरन होने लगना।
बैलेंस खो देना या बेहोशी आ जाना।
अगर शरीर में इस तरह से असामान्य लक्षण दिखने लगें तो ऐसी स्थिति को पैनिक अटैक कहा जाता है। ये ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनसे आप चाह कर भी भाग नहीं पाते।

कई हैं कारण
पैनिक अटैक आने का कोई विशेष समय नहीं होता। यह तब भी आ सकता है जब आप सो रहे होते हैं। इसका सीधा ताल्लुक में जीवन में बदलावों होना भी है। जैसे यंगस्टर्स में किसी कारण से जीवनशैली बदल जाना, तलाक हो जाना, नौकरी छूटने का डर या नौकरी का छूट जाना, अधिक तनाव में रहना, किसी नजदीकी की मौत। काफी सालों से किसी बड़ी बीमारी की चपेट में रहने या ब्रेकअप होने के बाद भी पैनिक अटैक हो सकता है। जिंदगी में घटा कोई बुरा हादसा पैनिक अटैक की वजह हो सकता है। ट्रॉमा से गुजरे लोगों में भी पैनिक अटैक होने की आशंका बनी रहती है। किसी-किसी को भीड़, लिफ्ट आदि के माहौल में भी पैनिक अटैक होता है और वे इसमें दोबारा जाने से बचने लगते हैं।

ये रहें सावधान
जो मधुमेह और बीपी के मरीज हैं उन्हें अधिक ध्यान देने की जरूरत है। डायबिटीज के मरीज का शुगर लेवल अचानक गिर सकता है और घबराहट में वह पैनिक अटैक का शिकार हो जाता है। ऐसे लोगों को ज्यादा देर तक भूखा नहीं रहना चाहिए। मधुमेह, बीपी, दिल के मरीज, थायरॉयड और अस्थमा के मरीजों के लिए इस तरह का अटैक एक गंभीर संकेत है। बीपी के मरीजों का बीपी लो हो या हाई, दोनो ही कंडिशन में उन्हें सतर्क रहना चाहिए। बीपी और हृदय रोग का दिल क्कर आने लगें, तो उन्हें अलर्ट हो जाना चाहिए। अस्थमा के मरीजों में पैनिक अटैक के दौरान सांस रुकने लगती है या रुकने का अहसास होता है। लगता है, अब नहीं बचेंगे। आपके व्यवहार में पैनिक अटैक की वजह से बदलाव आने लगें, जैसे पहले जहां अटैक आया है, वहां जाने से डर लगने लगे। ऐसी किसी भी स्थिति में डॉक्टर से मिलकर कंसल्ट करना चाहिए।

ये अधिक प्रभावित
पैनिक अटैक के मामले अधिकतर युवा और ४० वर्ष की उम्र वालों में अधिक देखे जाते हैं। खासकर जो लोग अक्सर तनाव में रहते हैं और कई जिम्मेदारियों को लेकर काम करते हैं।
ऐसे लोग जिन्हें जॉब जाने का खतरा अधिक रहता है वे पेनिक अटैक से अधिक प्रभावित रहते हैं। प्रतियोगी परीक्षाएं देने वाले स्टूडेंटस को भी ऐसे अटैक आते हैं।
अधिक उम्र के लोगों में पैनिक अटैक के कारण के पीछे कोई न कोई बीमारी होती है, ये डायबीटीज, बीपी या अस्थमा भी हो सकती है।
कई बार लिफ्ट बंद हो जाने या कोई अपराध में फंस जाने पर भी ऐसा हो सकता है। या भीड़भाड़ वाले इलाके में अनहोनी घटना के शिकार होने पर व्यक्ति इसका मरीज बन जाता है। महिलाओं में पैनिक अटैक पुरुषों की तुलना में ज्यादा देखने को मिलते हैं। महिलाओं में लंबे वक्त तक तनाव में रहने की वजह भी उनमें पैनिक अटैक की आशंका बढ़ जाती है।

इलाज
पैनिक अटैक का असर शरीर पर गहरा भी हो सकता है। ऐसे में अलर्ट रहें और सावधानी बरतें। पैनिक अटैक 20-30 मिनट का होता है। अटैक के बाद इसके होने का डर ही अगले पैनिक अटैक का कारण बनता है। अक्सर देखा गया है कि जहां भी पैनिक अटैक आता है, लोग वहां जाने से घबराने भी लगते हैं।

इमरजेंसी
अगर मरीज की हालत में 10 मिनट के अंदर सुधार नहीं दिखता है तो जल्द ही डॉक्टर के पास ले जाएं। या घर के आस-पास या अगर जनरल फिजिशियन है तो वहां ले जाएं। जिसे पैनिक अटैक आया है, उसे खुली जगह पर लिटाएं और उसके कपड़े ढीले कर दें। खुद से सबकुछ ठीक हो जाने की बात करें, शांत रहने की कोशिश करें।

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