गुजरात से आए जगदीश चितारा चादर पर कलमकारी को सीखा रहे हैं। वहीं गुजरात के ही राकेश राठवा और हरिसिंह राठवा पिथौरा पेंटिंग की जानकारी दे रहे हैं। गुजरात के साथ ही मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले से आएकलाकार गोंड पेटिंग की बारीकयां सिखा रहे हैं। उनकी पेंटिंग में जहां आदिवासयिों की देवी-देवताओं के प्रति अपनी आस्था अलग ही नजर आती है।
कॉलेज के फाइन आर्ट डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. योगेश त्रिपाठी बताते हैं कि इस तरह की वर्कशॉप से ना सिर्फ छात्राओं को नई चित्रकारी सीखने मिल रही है, साथ ही वे हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी समझ रही है। क्योंकि चित्र तो कोईभी देखकर बना सकता है,लेकिन उन चित्रों के पीछे कलाकार की क्या भावना है यह समझना जरूरी है।
गुजरात के कलाकार जगदीश चितारा ने बताया कि गुजरात में चादरों पर मां अंबे, काली के प्रसंगों को कलमकारी के जरिए दर्शाया जाता है।इसे गुजराती में ‘ माता नी पिछौड़ीÓ कहा जाता है। मूलरूप से इस कलमकारी में काले और लाल रंगो ंका ही ज्यादा प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं यह रंग भी वे खुद तैयार करते हैं।
गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बसें भील जनजाति की संस्कृति काफी मिलती जुलती है। जंगल और शिकार से जुड़े होने के कारण उनकी चित्रकारी में ज्यादातर जंगल, शिकार, और ग्रामीण परिवेश का चित्रण ज्यादा मिलता है।