आनंद के लिए साधना की गहराई में उतरना जरूरी
आराधकों को संबोधित करते हुए साध्वी लब्धियशाश्री ने कहा कि समुद्र के किनारे बैठकर रत्न प्राप्त नहीं किया जा सकता। रत्न पाने के लिए गोताखोर बनकर समुद्र की गहराई तक पहुंचना होगा। आनंद रूपी रत्न को प्राप्त करने के लिए हमें साधन रूपी समुद्र की गहराई में जाना ही होगा।
पुण्य-पुरूषार्थ से सहीं चलती है जीवन की गाड़ी
पुण्य की प्रबलता से जीवन में अच्छा माहौल प्राप्त हो जाता है, लेकिन पुरूषार्थ के बिना उपार्जित पुण्य का सही उपयोग नहीं हो पाता है। जीवन की गाड़ी सही दिशा में तभी दौड़ती है जब पुण्य और पुरूषार्थ दोनों पहिया ठीक हों। सत्पुरूषों और ज्ञानी महर्षियों का कार्य उपदेश देना है। उस उपदेश को अमल साधक को स्वयं करना होगा।
चातुर्मास में लगन और निष्ठा से सब संभव
यदि व्यक्ति की विवेक जागरूक हो जाए तो थोड़े ही समय में वह काम हो सकता है, जो तमाम जिन्दगी में नहीं हो पाता। चातुर्मास के थोड़े समय में लगनपूर्वक, निष्ठापूर्वक, धुनपूर्वक यदि आत्म कल्याण के मार्ग में आगे बढ़ जाते हैं तो पूरी जिन्दगी में जो हम नहीं कर पाये, वह कर लेंगे या उससे ज्यादा कर लेंगे।
गुणों का विकास प्रभु से दूरी मिटाने की चाबी
पुरूषार्थ करने की धुन लगनी चाहिए। ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि आत्मिक गुण हैं। इन गुणों का जितने अंश में विकास होता है उतने अंश में आत्मा निर्मल बनती है। प्रभु और अपने बीच का अन्तराल समाप्त होने लगता है। आत्म गुणों का विकास प्रभु और अपने बीच के अंतराल को मिटाने की चाबी है।