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अतीत का जिक्र नहीं और भविष्य का फिक्र नहीं, तभी बनता है जीवन सुखी – साध्वी लब्धियशाश्री

एक प्रयास भी जीवन मेें परिवर्तन का कारण बन सकता है। जीवन को सफल व सार्थक बनाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति सार्थक और सही दिशा में प्रयास करे। जिन्दगी का रास्ता कभी बना-बनाया नहीं मिलता, स्वयं को बनाना पड़ता है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।

दुर्गJul 26, 2019 / 08:53 pm

Hemant Kapoor

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अतीत का जिक्र नहीं और भविष्य का फिक्र नहीं, तभी बनता है जीवन सुखी – साध्वी लब्धियशाश्री

दुर्ग. एक प्रयास भी जीवन मेें परिवर्तन का कारण बन सकता है। जीवन को सफल व सार्थक बनाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति सार्थक और सही दिशा में प्रयास करे। जिन्दगी का रास्ता कभी बना-बनाया नहीं मिलता, स्वयं को बनाना पड़ता है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है। अतीत का जिक्र नहीं और भविष्य का फिक्र नहीं यह सूत्र जीवन को सुखी बनाता है। भूत का भय और भविष्य की आशंका में फंसकर व्यक्ति अपने सुखद वर्तमान को खो देता है। जो है, जैसा है, उसे वैसा ही सहजता से स्वीकारते हुए वर्तमान में भी आनंद की अनुभूति करना, जो सीख लेता है उसका जीवन आदर्श बन जाता है। पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मासिक धर्मसभा में प्रवचन करते हुए साध्वी लब्धियशाश्री ने उक्त बातें कही।

घाव सहकर पत्थर बनता है प्रतिमा
उन्होंने कहा कि हथौड़े का निरंतर प्रहार और छैनी का घाव को जो पत्थर सहन कर लेता है, वह प्रतिमा बन जाता है। जीवन में समर्पण और विनम्रता जरूरी है। गौतम स्वामी ने अपने गुरू महावीर स्वामी को भगवान माना और अपने को शत-प्रतिशत प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया। प्रभु के प्रति समर्पण, परम विनयी होने के कारण ही उन्हें अनेकों लब्धि मिली। जिसमें विनय की सुगंध है जिसमें समर्पण की सुवास है, जिसमें अटूट श्रद्धा है उसमें बहुत कुछ नहीं, सब कुछ प्राप्त करने की सामर्थता होती है।

प्रभु का मार्ग लकड़ी की नाव की तरह
प्रभु का मार्ग लकड़ी की वह नाव है जो बाह्य रूप से दिखने में सुंदर भले ना हो, पुराना हो लेकिन नदी को पार तो लकड़ी की नाव से ही किया जा सकता है। संगमरमर की सुंदर कलात्मक नाव से नदी पार नहीं कर सकते। प्रयास करें कि हममें शुभ कार्य करने की शक्ति नहीं है तो कम से कम अगर कोई कर रहा है तो उसमें बाधक ना बनें।

वर्तमान में जीना सीखे मनुष्य
सात पीढ़ी की चिंता में डूबा मनुष्य ना तो अपने जीवन को सुधार पाता है और ना ही वर्तमान को जी पाता है। वह ना ही देव-गुरू-धर्म के प्रति समर्पण का भाव रख पाता है। मन की शुद्धि की एक उपाय यह है कि हम वर्तमान में जीना सीखें, भूत-भविष्य की चिंताओं से मन को बोझिल न करें।
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