नोटिस और एक्ट में बदलाव से नाराज
भाजपा शासनकाल में वे जिला सरकारी केंद्रीय बैंक के चार बार अध्यक्ष बनें, लेकिन उन्हें लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा। को-ऑपरेटिव संस्था सबको के गठन को लेकर वे विवादों में भी रहे। इस दौरान सीईओ की नियुक्ति से लेकर सहकारिता एक्ट के परिपालन को लेकर विभाग के नोटिसों से काफी परेशान रहे। इन मामलों को लेकर भाजपा के पूर्व सहकारिता मंत्री दयालदास बघेल से उनका विवाद भी हो गया था। जानकारी के मुताबिक इन घटनाक्रमों से वे काफी आहत थे।
रमन सरकार जाने के बाद से कयास
प्रदेश में भाजपा के रमन सरकार की विदाई के बाद से बेलचंदन के पार्टी से मोहभंग होने व अन्य पार्टी में चले जाने को कयास लगाए जा रहे हैं। पिछले साल सहकारिता दिवस पर किसानों को लाभांश बांटने के लिए सीएम भूपेश बघेल को अतिथि बनाए जाने की घोषणा के बाद उनका कांग्रेस प्रवेश तय माना जा रहा था, लेकिन बाद भी किसी वजह से सीएम भूपेश बघेल का कार्यक्रम में आना टल गया था, इसके बाद उन्हें लेकर चर्चा भी ठंडी पड़ गई थी।
बदलेगा जिले का समीकरण
बेलचंदन के भाजपा छोडऩे का जिले का राजनीतिक समीकरण पर गहरा असर हो सकता है। दरअसल वे सांसद विजय बघेल के बेहद करीबी और सांसद सरोज पांडेय के धूर विरोधी माने जाते हैं। भाजपा छोडऩे से उनकी सांसद बघेल से दूरी बढ़ सकती है। वहीं बेलचंदन की सहकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले नेताओं, किसानों और समितियों के बीच अच्छी पैठ है। उनके पार्टी छोडऩे से भाजपा को नुकसान हो सकता है।
कांग्रेस प्रवेश पर बोले फैसला नहीं
भाजपा से इस्तीफे के बाद अगला राजनीतिक कदम क्या होगा, बेलचंदन ने अभी स्पष्ट नहीं किया है। पूछे जाने पर उन्होंने फिलहाल कांग्रेस में प्रवेश की किसी भी संभावना से इंकार कर दिया है, लेकिन सीएम भूपेश बघेल से किसी तरह की चर्चा के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली। उन्होंने कहा कि भाजपा छोडऩे और आगे की रणनीति पर वे जल्द मीडिया के साथ बात करेंगे।