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कैसे मिलेगा न्याय, MP के बाद CG के दुर्ग कोर्ट से 200 मुकदमों की फाइल गायब

जिला अदालत में विचाराधीन 200 से अधिक मुकदमों की फाइल गायब हैं। इनमें से कई गंभीर प्रकरणों से जुड़ी फाइल हैं।

दुर्गOct 23, 2017 / 10:02 am

Dakshi Sahu

मुकेेश देशमुख@दुर्ग. जिला अदालत में विचाराधीन 200 से अधिक मुकदमों की फाइल गायब हैं। इनमें से कई गंभीर प्रकरणों से जुड़ी फाइल हैं। जिला न्यायालय में दो से दस साल पुराने अलग-अलग प्रकरणों से जुड़ी फाइल हैं। यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में फाइलें मिसिंग बताई जा रही हैं। मिसिंग फाइल को लेकर न्यायलयीन स्टाफ से लेकर इन प्रकरणों से संबंधित अधिवक्ताओं और पक्षकारों के सामने परेशानी खड़ी हो गई है।
इनमें से कुछ प्रकरण तो ऐसे हैं जिनमें गवाही पूरी हो चुकी है। अब तर्क और बहस के बाद फैसला होना बाकी है। नियमत: प्रकरण के स्थानांतरण होने पर अधिवक्ता व पक्षकार को नोटिस दिया जाता है कि प्रकरण की सुनवाई अब संबंधित अदालत में होगी। अधिवक्ताओं ने बताया कि चार-पांच माह बाद भी उन्हें नोटिस नहीं मिला है।
कर्मचारियों को नहीं पता किस कोर्ट में केस
वकीलों की मानें तो चेक बाउंस के प्रकरणों के लिए जिला न्यायालय में दो अलग से कोर्ट था। जिसमें केवल चेक बाउंस के प्रकरणों की सुनवाई होती थी। न्यायाधीशों के तबादले के बाद यहां के प्रकरण अन्य न्यायालयों में स्थानांतरित किए गए। यह प्रकरण अब किस न्यायालय में हैं, इसकी जानकारी भी कर्मचारी नहीं दे पा रहे हैं।
कम्प्यूटर में लोड फाइलें
पूर्व में मुकदमों की लिस्टिंग न्यायालय के कर्मचारी मैन्युली करते थे। इसमें केस के क्रम में हेरफेर, बैंच हंटिग की शिकायतें आती थीं। अब लिस्टिंग कम्प्यूटराइज्ड है। मुकदमों के लगने की प्राथमिकता भी तय है। सालों पुराने मुकदमे भी लगने लगे। लिस्टेड केस की फाइल संबंधित कोर्ट भेजी जाती है। इससे मिङ्क्षसग फाइल के मामले भी पकड़ में आ जाते हैं। फिर गायब फाइल खोजकर निकाल ली जाती है।
विडंबना सिस्टम भी हो गया फेल
जिला न्यायालय में प्रकरणों की जानकारी के लिए अलग से पंजीयन कक्ष है। न्यायालय में कम्प्यूटराइज्ड व्यवस्था के बाद प्रकरणों का रिकॉर्ड अपलोड किया गया है। अधिवक्ता भुवन यादव ने बताया कि शासन विरुद्ध राजू उर्फ पुरू यादव का प्रकरण क्रंमाक २५४ -१० है। न्यायाधीश के स्थानांतरण के बाद प्रकरण को दूसरे कोर्ट में भेजा गया। आखिरी पेशी १५ सिंतबर २०१६ को हुई है। अब प्रकरण को किस अदालत में है स्थानांतरित किया गया है इसकी जानकारी पंजीयन कक्ष में भी नही है।
एमपी में थी सुर्खियों में फाइल गुम होने की घटना
मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट से 50 फाइल गुम हो जाने का मामला सुर्खियों में आया था। बीते साल नवंबर में इस मामले के बाद फाइल की तलाशी के साथ जवाबदेही तय करने तक पर बात हुई थी। हत्या जैसे संगीन अपराधों की केस फाइल गुम हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार से जवाब तलब किया। बीते जुलाई में उप्र सरकार ने माना कि 1981 से 1991 के बीच के 74 से अधिक फाइल गुम हो गई हैं।
पांच कर्मचारियों के खिलाफ चार्जशीट
इलाहाबाद हाईकोर्ट के हाई सिक्योरिटी जोन से महत्वपूर्ण केस फाइल गुम हो जाने का मामला सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया। सीबीआई ने पांच कर्मचारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दस वर्ष पुराने प्रकरणों का एक साल में निराकरण किया जाना है। इसके लिए जब प्रकरण को सूचीबद्ध किया गया, तब करीब 10 हजार प्रकरण र्लंिबत मिले। इनको त्वरित सुनवाई के लिए अलग-अलग न्यायालयों में स्थानांतरित किया गया। माना जा रहा है कि इसी दौरान केस फाइल इधर-उधर हो गई हैं।
री-कंस्ट्रक्शन का प्रावधान
प्रावधान है कि रिकॉर्ड गुम जाने पर चीफ जस्टिस रजिस्ट्री को फाइल के री-कंस्ट्रक्शन का आदेश देते हैं। उस मुकदमे से संबंधित पक्षकारों, वकीलों और सरकारी दफ्तरों से संपर्क कर दस्तावेज एकत्र किए जाते हैं और नई फाइल तैयार कर सुनवाई की जाती है। सुदर्शन महलवार, लोक अभियोजक जिला न्यायालय दुर्ग ने बताया कि कोई भी प्रकरण फैसले के बिना नस्ती नहीं किया जाता। फैसला आने पर नस्ती के बाद ही रिकॉर्ड रूम में भेजा जाता है। रही बात कुछ प्रकरणों की फाइल नहीं मिलने की तो कई बार फाइलों के ढेर में दब जाती है।
फाइलें गुमती नहीं है। फाइलें दबी होगी, मिल जाएगी। मनोज मिश्रा, अधिवक्ता ने बताया कि धारा-१३८ के तहत केस रजिस्टर्ड था। न्यायाधीश शीनू सिंह के न्यायालय में प्रकरण विचाराधीन था। इसके बाद प्रकरण कहां है पता नहीं। सचिव जिला अधिवक्ता संघ रविशंकर सिंह ने बताया कि मिसिंग फाइल पर कहना है कि तलाश की जा रही है। व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो हाईकोर्ट में शिकायत करेंगे।

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