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थम नहीं रही ट्रेनों में चोरी व उठाईगिरी की घटनाएं, इस साल दर्ज १४२ प्रकरणों में से आधे का निराकण भी नहीं

सफर के दौरान चोरी और उठाइगिरी की घटना की शिकायत एप में करने की सुविधा देकर रेलवे में यात्रियों की परेशानी कम करने की कोशिश की है।

दुर्गSep 07, 2018 / 10:06 pm

Naresh Verma

patrika

थम नहीं रही ट्रेनों में चोरी व उठाईगिरी की घटनाएं, इस साल दर्ज १४२ प्रकरणों में से आधे का निराकण भी नहीं

दुर्ग . सफर के दौरान चोरी और उठाइगिरी की घटना की शिकायत एप में करने की सुविधा देकर रेलवे में यात्रियों की परेशानी कम करने की कोशिश की है पर रेलवे पुलिस की विवेचना पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। यही वजह है कि लंबित मामले बढ़ते जा रहे है। इस साल अब तक चोरी व उठाईगिरी के १४२ प्रकरण दर्ज किए गए हैं। जिनमें से ९३ प्रकरणों को विवेचना के लिए रेलवे पुलिस ने संबंधित थानों को भेजा है। वहीं ४९ प्रकरणों की जांच दुर्ग जीआरपी चौकी के अधिकारी कर रहे हैं। इस वर्ष दर्ज प्रकरणों में केवल १५ प्रकरण निराकृत हुए है।
रेलवे पुलिस दर्ज सूचना के आधार पर आरोपियों तक पहुंचने के लिए आज भी मुखबिर पर आश्रित है। चोरी करने वाले गिरोह के सदस्य चोरी की घटना को हाईटेक तरीके से अंजाम दे रहे हैं। जबकि ट्रेनों में यात्रियों की कीमती सामानों पर हाथ साफ करने वालों को गिरफ्तार करने के लिए रेलवे पुलिस पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। अपराध दर्ज होने पर पुलिस सबसे पहले निगरानी बदमाशों की तलाश करती है। उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करती है। किसी तरह का क्लू नहीं मिलने पर पुलिस ऐसे आरोपियों के बारे में पतासाजी करती है जिन्हें चोरी के आरोप में पहले गिरफ्तार कर जेल भेजा चुका है। इसके बाद भी प्रकरण की गुत्थी नहीं सुलझने पर मुखबिर तंत्र का उपयोग करती है।
आरपीएफ व जीआरपी में तालमेल का आभाव

दुर्ग रेंज के आईजी जीपी सिंह ने समीक्षा बैठक की तो खुलासा हुआ कि चिन्हित गिरोह के अलावा कई ऐसे अपराधी हैं,जो ट्रेनों में चोरी की घटना को अंजाम देते हैं। ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए आइजी जीपी सिंह ने आरपीएफ व जीआरपी के आला अधिकारियों की बैठक ली थी। जिसमें अपराधियों का रिकार्ड साझा करने का प्रस्ताव दिया था। इसका मुख्य उद्देश्य रिकार्ड साझा कर प्रकरणों का निराकण करना था। आइजी के इस पहल पर किसी तरह का कार्य शुरू नहीं हुआ।
दो साल में ८ प्रकरण पहुंचा उपभोक्ता फोरम

सफर के दौरान चोरी होने पर पीडि़त रेलवे चौकी में एफआईआर दर्ज करवाते हैं। इसके बाद पीडि़तों को चक्कर लगाना पड़ता है। रेलवे पुलिस से किसी तरह की मदद नहीं मिलने पर पीडि़त अब उपभोक्ता फोरम की शरण ले रहे हैं। सफर के दौरान हुई चोरी के लिए रेलवे को जिम्मेदार ठहराते हुए २ वर्ष में कुल ८ प्रकरणों पर फैसला सुनाया गया है। फोरम ने २५ अगस्त २०१८ को समृति नगर निवासी दिलीप चतुर्वेदी के परिवाद पर रेलवे को ९.६५ लाख रुपए हर्जाना जमा करने का आदेश दिया है। चोरी अमरकंटक एक्सप्रेस में हुई थी।
मामला शून्य में दर्ज कर भूल जाते हैं अफसर

आमतौर पर पीडि़त गंतव्य स्थान पहुंचने के बाद ही घटना की शिकायत करते है। सफर के दौरान समय का अभाव होने पर वे संबंधित चौकी या रेलवे थाना तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे प्रकरणों में रेलवे पुलिस जीरों में एफआइआर दर्ज कर उसे संबंधित चौकी में जांच के लिए डॉक के माध्यम से भेज देती है। खास बात यह है कि प्रकरण को संबंधित थाना भेजने के बाद वह प्रकरण निराकृत हुआ है कि नहीं इसकी किसी तरह की जानकारी नहीं होती। यही कारण है कि पीडि़तों को एफआईआर करने के बाद भटकना पड़ता है। इस साल दुर्गजीआरपी चौकी ने ९३ प्रकरणों को अलग अलग थानों को भेजा है।
तरीका बदला

सफर के दौरान चोरी करने अपराधी बोगी में प्रवेश कर बिस्कूट क ो गीला कर यात्रियों के उपर फेक दिगभ्रमित कर चोरी करते थे। इसके बाद वे नशीला खाद्य पदार्थ खिलाकर चोरी की वारदात को अंजाम देते थे। अब अपराधियों ने तरीका बदल दिया है। अब वे यात्री बनाकर पहले बोगी में प्रवेश करते है और इसके बाद बातों में उलझाकर सामान पर हाथ साफ करते हैं। कई गिरोह ऐसे है जो यात्रियों का सोने का इंतजार करते है इसके बाद बेहोशी करने का स्प्रे का उपयोग करते हैं।
इस संबंध में जीआरपी प्रभारी दुर्ग राजेंद्र सिंह का कहना है कि एफआइआर दर्ज के बाद हम जांच करते है। वर्तमान में मोबाइल चोरी के प्रकरण अधिक है। नंबर ट्रेस कर आरोपी तक पहुंचते है। संपत्ती संबंधी चोरी में मुखबिर व आदतन बदमाशों से पूछताछ जांच का मुख्य हिस्सा है।

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