श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ में पर्युषण पर्व व्याख्यान माला उक्त बातें श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ में पर्युषण पर्व व्याख्यान माला में साध्वी लक्ष्ययशाश्री ने संवत्सरी क्षमापना सभा में कही। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति के अपने विरूद्ध किए गए अपराध या दुव्र्यवहारों को पूर्ण रूप से विस्मृत कर देना, सहनशील होना यानि क्रोध नही करना, क्रोध को सहज विनम्र भाव से निष्फल कर देना ही क्षमा है। क्षमा एक बहुत बड़ा तप है, यह एक जीवन की नहीं जन्म-जन्म की साधना है जो सहज नहीं, कठिन है। उन्होंने कहा कि यह सहिष्णुता, सौहाद्र्र, समन्वय, समता, शांति व सद्भाव का पर्याय है। जीवन का बड़े से बड़ा संघर्ष क्षमा से टाला जा सकता है। क्षमा याचना करने से अधिक साहस का काम क्षमा प्रदान करना है। इसलिए क्षमा को वीरों का भूषण कहा गया है।
क्षमा में युद्ध खत्म करने की भी ताकत
उन्होंने कहा कि अपराधी के प्रति प्रतिशोध की भावना न रखकर यदि उसे क्षमा कर देते हैं तो अपराधी पानी-पानी हो जाता है और क्षमा करने वाला व्यक्ति यश प्राप्त कर लेता है। क्षमा शब्द में इतनी शक्ति है कि वह बड़े से बड़े युद्ध और विवाद को खत्म करने में समर्थ है। यही कारण है कि क्षमा मानव मात्र के लिए सबसे बड़ा आभूषण है।
क्षमा गुण से बनाएं व्यवहार को उत्कृष्ट
आज हिंसा, आतंक, घृणा और द्वेष मानवता को निष्प्राण बना रहे हैं। इन स्थितियों में सबसे बड़ी आवश्यकता मनुष्य के हृदय में मैत्री और क्षमा के बीजरोपण की है, जिससे मानवीय व्यवहार उत्कृष्ठ बन सकें। सभी परस्पर प्रेम और क्षमायाचना कर मन का मैल धो डालें और समाज में फैले विद्वेष, वैमनस्य, घृणा, क्रोध और वैरभाव को इस क्षमा गुण से दूर करें।