scriptदुर्ग न्यूज : सेवा में ऐसा रमा मन कि बन गया गुरूद्वारे का सेवादार, मौत के बाद पता चला वे गुजराती समाज के थे | It was discovered after death that he was not a Sikh, but a Gujarati | Patrika News
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दुर्ग न्यूज : सेवा में ऐसा रमा मन कि बन गया गुरूद्वारे का सेवादार, मौत के बाद पता चला वे गुजराती समाज के थे

नाम हरीश भाई। उम्र 54 वर्ष। जन्म तो गुजराती समाज में लिए पर कर्म से उनकी पहचान सेवादार के रूप रही। उनको उनके मूल नाम से शहर में कोई नहीं जानता था। उनकी पहचान सेवादार के रूप में थी। इसी वजह से उनके निधन पर रिश्तेदारों से पहले सिक्ख समाज पहुंच गया।

दुर्गSep 14, 2019 / 11:42 pm

Satya Narayan Shukla

सेवा में ऐसा रमा बन गया गुरूद्वारे का सेवादार, मौत के बाद पता चला वह गुजराती था

सेवा में ऐसा रमा बन गया गुरूद्वारे का सेवादार, मौत के बाद पता चला वह गुजराती था

दुर्ग@Patrika. नाम हरीश भाई। उम्र 54 वर्ष। जन्म तो गुजराती समाज में लिए पर कर्म से उनकी पहचान सेवादार के रूप रही। उनको उनके मूल नाम से शहर में कोई नहीं जानता था। (Durg Patrika) उनकी पहचान सेवादार के रूप में थी। इसी वजह से उनके निधन पर रिश्तेदारों से पहले सिक्ख समाज पहुंच गया। बाद में रिश्तेदार पहुंचे। आपसी सहमति के बाद संतराबाड़ी स्थित गुरुद्वारा में पहले अरदास हुई (Ardas held in gurudwara) । बाद में शिवनाथ तट पर हरीश का अंतिम संस्कार सामाजिक रीति रिवाज हुआ। तब मुक्तिधाम में सिक्ख समाज (Sikh society) और गुजराती समाज (Gujarati community) के सदस्य एक साथ उपस्थित थे।
पुलिस ने लावारिस समझकर शव का मारच्यूरी में रखवाया
हरीश भाई की मृत्यु सड़क दुर्घटना में 12 सिंतबर को रायपुर नाका क्षेत्र में हो गई थी। वे साइकिल से जाते समय गाय से टकराकर सड़क पर गिर गए। इस घटना में सिर पर गंभीर चोट आने की वजह से उनकी मौत हो गई। बाद में डायल 112 के कर्मचारियों ने शव को लावारिस समझकर मॉरच्यूरी में रखवा दिया। इसकी जानकारी समाज सेवी धमेन्द्र शाह को हुई। उन्होंने समाज के सदस्यों से संपर्क किया तब खुलासा हुआ कि हरीश भाई दीपक नगर निवासी थे, लेकिन वे लंबे समय में गुरूद्वारा में सेवाएं दे रहे थे। उनकी आस्था को देख परिवार वालों ने भी उनकी दिनचर्या में हस्तक्षेप करना बंद कर दिया था।
संगतकार से बने सेवादार

हरीशभाई के पिता संगीतकार से थे। उन्होंने संगीत की तालीम अपने पिता से ली थी। वे अच्छे तबला वादक थे।लगभग 20 साल पहले वे गुरुद्वारा में संगतकार के रुप में जाते थे। धीरे-धीरे वे अपना समय गुरुद्वारा में बिताने लगे। कुछ वर्ष के बाद वे गुरुद्वारा में इतने लीन हो गए कि वे किसी भी समय दुर्ग-भिलाई के गुरुद्वारा में अपनी सेवाएं देने पहुंच जाते। लोग उन्हें सम्मान के साथ सेवादार पुकारते थे। फिर यही उनकी पहचान बन गई।
देखकर यह कोई नहीं कह सकता ये सिक्ख नहीं

दीपक नगर निवासी हरीश भाई को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि वे सिक्ख समाज के नहीं हैं। पगड़ी से लेकर सफेद दाढ़ी और पंजाबी बोली से वे सबको प्रभावित कर देते थे। वे गुरु ग्रंथ से इतने प्रभावित थे कि सारा समय उनका गुरुद्वारा के आसपास बीतता था। सुबह उठकर सच्चे सेवादार की तरह वे गुरुद्वारे की सफाई काम में लग जाते। किसी उत्सव के समय वे सच्चे सिक्ख की तरह पूरे समय गुरुद्वारा आए लोगों की सेवा करते।
निधन के बाद पता चला वे गुजराती समाज के थे

खास बात यह है कि सिक्ख समाज के बहुत लोगों को भी यह नहीं मालूम था कि वास्तव में हरीश भाई गुजराती समाज के थे। उनके निधन होने के बाद ही लोगों को यह बात मालूम हुई। समाज के कुलवंत सिंह भाटिया ने बताया कि निधन की सूचना मिलते ही उन्होंने गुरुद्वारा के ग्रंथी ज्ञानी गहेल सिंह को सूचना दी। तब ज्ञानीजी ने शव को गुरुद्वारा लाने कहा और अरदास के बाद सिक्ख रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। इसी दौरान घटना की जानकारी हरीश के रिश्तेदारों की हुई। तब आपसी सहमति बनी और अरदास के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव परिजनों के हवाले किया गया। अंतिम संस्कार कार्यक्रम में मृतक की बहन रायपुर निवासी स्मिता टांक, जयराम नगर से दमयंती टांक शामिल हुर्इं।
प्रमुख तीर्थ यात्रा पूरी कर चुके थे
हरीश भाई की आस्था गुरु ग्रंथ पर थी। वे उसके प्रति समर्पित थे। उनकी आस्था इतनी थी कि सिक्ख धर्म के सभी प्रमुख तीर्थ का भ्रमण कर चुके थे। हेमकुंड साहेब यात्रा, हजुर साहेब नादेड़ और हरविंदर साहेब अमृतसर की यात्रा पूरी कर चुके थे।
जेब में मिला नितनेम गुटिका
अंतिम संस्कार के पहले जब मृतक के पहने हुए कपड़ों की तलाशी ली गई तो जेब में नितनेम गुटिका और धार्मिक स्थलों की तस्वीर मिली। सिक्ख समाज के लोगों ने बताया कि हरीशभाई नियमित नितनेम गुटिका का पाठ करते थे। खाली समय में गुटिका उनके हाथों में होता था।
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