बाकी छह सीटों रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, सरगुजा और रायगढ़ में भाजपा के सांसद थे। लेकिन भाजपा ने इस बार सारे सांसदों को घर बैठाकर नए चेहरों पर दांव खेला है। सीएम भूपेश बघेल ने राज्य की 90 में से 68 सीटें जीतकर छत्तीसगढ़ के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है और लोकसभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं है। कांग्रेस दावा कर रही है कि पिछले चुनाव के परिणाम को उलट देगी ।
दुर्ग लोक सभा सीट बन चुका है प्रतिष्ठा का प्रश्न
आजादी के बाद से दुर्ग लोकसभा सीट पर कुल 16 बार चुनाव हो चुके हैं। 1952 से 1999 के बीच बिलासपुर प्रदेश का हिस्सा था। इसके बाद 2004 से 2014 में बतौर छत्तीसगढ़ का हिस्सा बिलासपुर में तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। 1996 से इस क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा रहा, लेकिन 2014 के चुनावों में कांग्रेस इस सीट पर कब्जा जमाने में कामयाब रही। इस निर्वाचन क्षेत्र से वर्तमान में ताम्रध्वज साहू सांसद हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र से सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक चंदूलाल चंद्राकर ने लोकसभा के पांच चुनाव जीते हैं।
दुर्ग भूपेश बघेल का इलाका है ऐसे में यहाँ उनकी प्रतिष्ठा दावं पर है और यहाँ कांग्रेस प्रत्याशी से ज्यादा भूपेश बघेल की लड़ाई है।हालाँकि भाजपा ने अच्छा राजनितिक दांव खेलते हुए मुख्यमंत्री भूपेश के ही रिश्तेदार विजय बघेल को मैदान में उतारा है।दुर्ग जाति बहुल इलाका है ऐसे में वोटो का बटवारा होना तय है।विजय बघेल भाजपा के लिए दुर्ग की सीट हांसिल करने का माद्दा रखते हैं क्योंकि इससे पहले वह भूपेश बघेल को चुनाव में हरा चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में इसबार भी मोदी फैक्टर चल रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार का लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित करेगी।साथ ही इसबार कांग्रेस और भाजपा दोनों ने नए चेहरों को मौका दिया है ऐसे में इसका ज्यादा फायदा भाजपा को मिल सकता है क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है और उनके पास मोदी का चेहरा भी है।