गबन की गई राशि 1 लाख रुपए से भी अधिक है। गणवेश घोटाले की जानकारी विभागीय अधिकारियों के कानों तक पहुंचने के बाद जांच भी गुपचुप तरीके से कराया गया। अधिकारियों ने जांच रिपोर्ट में छात्रावास की तत्कालीन अधीक्षक दिप्ती खोब्रागढ़े को दोषी ठहराते हुए उससे रिकवरी करने और आर्थिक अनियमितता के मामले को पुलिस को सौंपने की सिफारिश की गई है।
खास बात यह है कि दो साल पुराने इस मामले की फाइल को परियोजना कार्यालय के आलमारी में बंद कर रखा गया। अब अफसर सफाई दे रहे हैं कि रिकवरी कराई जाएगी। छात्रावास का निरीक्षण करने वाले अधिकारियों ने इस गड़बड़ी के पकड़ा। वहां की छात्राओं ने निरीक्षण करने आए अधिकारियों के पूछने पर बता दिया कि उन्हें स्कूल व छात्रावास में पहनने के लिए दिए जाने वाला गणवेश नहीं मिला है।
अधिकारियों के सवाल पर परियोजना कार्यालय के कर्मचारियों का कहना था कि राशि दिया जा चुका है। इसी बीच खुलासा हुआ कि अधीक्षक ने गणवेश बांटे ही नहीं और राशि को खर्च कर फर्जी बिल प्रस्तुत किया है। घुमंतू और ऐसे माता पिता जो गरीब हैं और बच्चों को पढ़ाने की इच्छा रखते हैं ऐसे लोगों के लिए शासन मुख्यालय स्तर पर छात्रावास संचालित कर रहा है।
दो साल पहले छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाले गरीब बच्चों के लिए गणवेश खरीदने शासन ने एक लाख रुपए आवंटित किया था। इस राशि को तत्कालीन महिला अधीक्षक दिप्ती खोब्रागढ़े (वर्ग-३) ने अधिकारियों से साठगांठ कर आहरण कर लिया।