2.इस मंदिर में जाने के लिए पुरुषों को साड़ी पहननी होती है। साथ ही उन्हें पूरा सोलह श्रृंगार करना होता है। तभी वो स्त्री जैसे दिखते हैं। लोग यहां पूर्ण श्रद्धा के साथ दर्शन के लिए आते हैं।
3.पुरुषों के सजने के लिए मंदिर परिसर में ही एक कमरा बनाया गया है। जहां स्त्रियों की वेशभूषा से लेकर नकली बाल एवं गहने मौजूद है। कई पुरुष अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां श्रृंगार का सामान भी भेंट करते हैं।
4.मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी पुरुष सच्चे मन से मुराद मांगता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस मंदिर में महिलाओं के अलावा पुरुष भी आस्था रखते हैं। तभी यहां आयोजित होने वाले विशेष उत्सवों में मर्दों की संख्या ज्यादा होती है।
5.इस मंदिर में चाम्याविलक्कू उत्सव मनाया जाता है। इस समारोह में शामिल होने के लिए देश के हर कोने से पुरुष आते हैं। मर्दों के अलावा यहां ट्रांसजेंडरों की भी भीड़ होती है। उनका मानना है कि जहां समाज में उन्हें तिरस्कार मिलता है वहीं इस मंदिर में उन्हें सम्मान मिलता है।
6.ये मंदिर काफी प्राचीन है और आज तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में है। यहां मंदिर के ऊपर न तो कोई छत है और न ही कोई कलश ही। इस राज्य का यह ऐसा एकमात्र मंदिर है जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं है।
7.इस मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों के कपड़े पहनने के पीछे एक पौराणिक मान्यता बताई जाती है। मान्यता के अनुसार कुछ चरवाहों ने महिलाओं के कपड़े पहनकर पत्थर पर फूल चढ़ाए थे, जिसके बाद उस पत्थर से दिव्य शक्ति निकलने लगी थी।
8.बताया जाता है कि चरवाहों के ऐसे पूजा करने के बाद से ही यहां मंदिर बनवाया गया। हालांकि इसे दूसरे मंदिरों की तरह ज्यादा भव्य नहीं बनाया गया है। मगर इसकी महत्ता को देखकर लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।
9.मंदिर के सिलसिले में एक और कहानी प्रचलित है जिसके तहत कुछ लोगों ने मंदिर में मौजूद एक पत्थर पर नारियल फोड़ रहे थे तभी पत्थर से खून निकलने लग गया। जिसके बाद से यहां कि पूजा की जाने लगी।
10.माना जाता है देवी मां यहां पत्थर के स्वरूप में विराजमान हैं। तभी पत्थर से खून निकल रहा था। यहां पूजा करने एवं दर्शन करने मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।