अपने एक रिसर्च पेपर में सुब्रमण्यम ने लिखा है, “भारत के परिदृश्य में कई ऐसे साक्ष्य हैं, जिसमें 2011 के बाद प्रति वर्ष जीडीपी का अनुमान करीब 2.5 फीसद बढ़ाकर रिपोर्ट किया गया है।” सुब्रमण्यम लिखते हैं, “देश के ऑटोमोबाइल नीति को खराब और संभवत: टूटे स्पीडोमीटर की तर्ज पर चला गया है।”
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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिश रिसर्च में पेपर में लिखा
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यायल (सीएसओ) द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में देश का आर्थिक ग्रोथ 5.8 फीसदी के साथ बीते पांच साल के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। कृषि और उत्पादन सेक्टर की हालत खराब होने के बाद भारत अब आर्थिक ग्रोथ के मामले में पड़ोसी देश चीन से पीछे हो चुका है। हार्वर्ड यूनिर्वसिटि में पब्लिश हुए इस रिसर्च पेपर में सुब्रमण्यम ने दावा किया है कि देश के उत्पादन क्षेत्र के ग्रोथ को बुरी तरह से मापा गया है।
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राजनीतिक नहीं है यह मामला
साल 2011 के पहले, मैन्युफैक्चरिंग वैल्यू में इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन और मैन्युफैक्चरिंग निर्यात के डेटा पर गहन तरीके से ध्यान दिया जाता था। लेकिन, इसके बाद प्रमुख कार्यप्रणाली में बदलाव के बाद औपचारिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के डेटा पर असर पड़ा है। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने यह भी माना की आर्थिक ग्रोथ में यह गड़बड़झाला राजनीतिक नहीं है। उन्होंने हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था, “मेरे रिसर्च से पता चलता है कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, अर्थशास्त्रियों ने भारत की आर्थिक रफ्तार की तेजी को लेकर हमारा विश्वास बढ़ाया है। हमें लगने लगा कि हमारी आर्थिक रफ्तार काफी तेज है। हमें यह मानना होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज है लेकिन, इतनी भी शानदार नहीं है।”
गलत आंकड़ों ने डुबाई आर्थिक क्रांति की उम्मीद
उन्होंने कहा, “गलत आर्थिक आंकड़ों ने आर्थिक रिफॉर्म की प्रेरणा को गहरा झटका दिया है। अगर सही आंकड़े सामने आए होते तो इससे बैंकिंग सेक्टर और कृषि सेक्टर में सही समय पर जरूरी कदम उठाए जाते।” उन्होंने कहा कि जीडीपी अनुमान को स्वंतत्र टास्क फोर्स द्वारा एक बार परखना चाहिए।
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