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राजनीतिक दलों के पास है करोड़ों का चंदा, लेकिन कहां से आया इसका नहीं है कोई हिसाब

लोकसभा चुनाव होने में कुछ ही दिनों का समय रह गया है। ऐसे में सभी लोग चुनाव की तैयारियों में लगे हुए हैं।
आपको बता दें कि अगर हम पिछले 10-15 सालों की बात करें तो राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में सबसे ज्यादा अज्ञात स्रोतों की मात्रा है।
वहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड के प्रयोग के बाद भी इसमें बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।

Mar 26, 2019 / 04:46 pm

Shivani Sharma

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राजनीतिक दलों के पास है करोड़ों का चंदा, लेकिन कहां से आया इसका नहीं है कोई हिसाब

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव होने में कुछ ही दिनों का समय रह गया है। ऐसे में सभी लोग चुनाव की तैयारियों में लगे हुए हैं। ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि देश के राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में बताते हैं। अगर हम पुराने आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि देश के राजनीतिक दलों की फंडिंग में अज्ञात स्रोतों से आने वाले आय की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।


सबसे ज्यादा अज्ञात स्रोतों से मिलता है चंदा

आपको बता दें कि अगर हम पिछले 10-15 सालों की बात करें तो राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में सबसे ज्यादा अज्ञात स्रोतों की मात्रा है। वहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड के प्रयोग के बाद भी इसमें बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।


इतना मिला चंदा

आपको बता दें कि एडीआर से मिला जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004-05 से 2017-18 के दौरान कुल 9,278.3 करोड़ रुपए का चंदा मिला है। इसमें से 6,612.42 करोड़ रुपए का चंदा यानी करीब 71 फीसदी चंदा अज्ञात स्रोतों से हासिल हुआ है। साल 2015-16 के दौरान कुल चंदा 1,033.22 करोड़ रुपए का मिला, जिसमें से 708.48 करोड़ रुपए का चंदा अज्ञात स्रोतों से मिला। साल 2016-17 के दौरान राजनीतिक दलों को कुल चंदा 1,559.17 करोड़ रुपए का मिला, जिसमें से 710.8 यानी 46 फीसदी चंदा अज्ञात स्रोतों से मिला।


60 फीसदी अज्ञात स्रोतों से मिला चंदा

आपको बता दें कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ( ADR ) की रिपोर्ट के मुताबित चंदे का विश्लेषण किया गया। इसमें राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की ऑडिट रिपोर्ट में दी गई जानकारी से पता चला कि साल 2004-05 से 2017-18 के दौरान राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का 66 फीसदी हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आता है।


कम हुई है पारदर्शिता

वहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर 26 मार्च को सुनवाई है। आपको बता दें कि ये विधेयक राजनीतिक फंडिग में पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए लाया गया था, लेकिन इसके बाजार में उल्टे असर देखने को मिले हैं। इस बॉन्ड से पारदर्शिता बढ़ने की जगह कम हो गई है।

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