उर्जित पटेल ने रखी है सरकार के विपरीत राय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, मंगलवार को संसद की स्थायी समिति के सामने पेश हुए आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने रिजर्व बैंक के अतिरक्त कोष पर सरकार की मंशा से विपरीत राय रखी है। सूत्रों के मुताबिक, पटेल ने कहा कि केंद्रीय बैंक के पास अभी रिजर्व का जो स्तर है, वह अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए कर्ज देने की क्षमता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है। पटेल का मानना है कि आरबीआइ की ट्रिपल ए रेटिंग को बरकरार रखने के लिए मौजूदा रिजर्व के 11 फीसदी को बरकरार रखा जाए। इस बात का यह मतलब निकाला जा रहा है कि केंद्रीय बैंक फिलहाल सरकार को रिजर्व में से कोई बड़ी रकम देने के मूड में नहीं है।
पैनल के नामों को लेकर भी बढ़ सकती है खटास इसके अलावा पूंजीगत ढांचे पर बनने वाले पैनल को लेकर भी सरकार और आरबीआई में रस्साकसी होती दिख रही है। रिपोर्टों के मुताबिक, सरकार ने इस पैनल की अध्यक्षता के लिए आरबीआइ के पूर्व गवर्नर बिमल जालान का नाम सुझााया है। उधर आरबीआइ ने पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन का नाम प्रस्तावित किया है। नामों पर यह मतभेद महज पसंदीदा व्यक्ति का सवाल नहीं, बल्कि यह बहुत हद तक पैनल की रिपोर्ट के रुख को भी तय करेगा। राकेश मोहन जहां केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता के प्रबल पक्षधर रहे हैं, वहीं बिमल जालान को सरकार के साथ समन्वयात्मक रवैये के लिए जाना जाता है। हाल ही में उन्होंने कहा भी है कि आरबीआइ की जवाबदेही सरकार के प्रति बनती है।
पैनल के कार्य को लेकर दोनों आमने-सामने हालांकि, सूत्रों के मुताबिक यह पैनल आरबीआइ के रिजर्व का स्तर तय करने पर चर्चा नहीं करेगा, पर उसकी ओर से विभिन्न जोखिमों के लिए किए जाने वाले मौद्रिक प्रबंधन (प्रोविजनिंग) इसकी चर्चा के दायरे में होंगे। इसके तहत भी अच्छी खासी नकदी आती है। इस लिहाज से यह पैनल आने वाले समय में आरबीआइ की दशा-दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है।