ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी का था अनुमान
मौद्रिक नीति समीति ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फिति के 3.9 सें 4.5 फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगाया है। वहीं वित्त वर्ष 2019-20 के पहली तिमाही के दौरान ये 4.8 फीसदी तक जा सकता है। समिति ने कहा मुद्रास्फिति कर्इ बातों पर निर्भर करेगा। आरबीआर्इ की इस बैठक की शुरुआत बुधवार यानी 3 अक्टूबर को हुर्इ थी। इसके पहले आर्थिक मामलों से जुड़े जानकारों का मानना था कि केंद्रीय बैंक नीतिगत ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है। एचडीएफसी बैंक के चीफ इकोनाॅमिस्ट अभीक बरुआ ने आरबीआर्इ के इस फैसले को लेकर कहा कि, “आरबीआर्इ का ये कदम रिस्की है। रुपए की कमजोरी को देखते हुए बाजार में दरों की बढ़ने की संभावना थी। इसकी अनुपस्थिति में करेंसी आैर परिसंपत्ति बाजार में तेज सुधार देखने को मिलेगा। वित्तीय संकट के इस दौर में मुद्रास्फिति के लक्ष्यों पर ध्यान देना शायद वांक्षनीय नहीं है। हालांकि केंद्रीय बैंक के इस फैसले से एक बात तो साफ जाहिर है कि आने वाले महीनों मे दरों में बढ़ोतरी की जा सकती हैं।”
पहले दो बैठकों में बढ़ार्इ थी ब्याज दरें
गौरतलब है कि केंद्रीय बैंक ने यह फैसला एक एेसे समय पर लिया है जब डाॅलर के मुकाबले रुपए में लगातार कमजोरी देखने को मिल रही है, कच्चे तेल के भाव में इजाफे का दौर जारी है आैर राजकोषिय घाटे पर भी दबाव बना हुआ है। एेसे में महंगार्इ दर में इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। बता दें महंगार्इ को काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने जनू आैर अगस्त माह की बैठक में रेपो रेट में 0.25 फीसदी का बढ़ोतरी किया था।
रुपए पर पड़ सकता है बुरा असर
अारबीआर्इ ने पहले ही महंगार्इ दर को 4 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा था। हालांकि माैजूदा समय में महंगार्इ दर रिजर्व बैंक के लक्ष्य से अधिक है। भारतीय रिजर्व बैंक के इस फैसले से देश के बैंकों समेत आम लाेगों को एक बड़ी राहत मिली है। हालांक अार्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि आरबीआर्इ के इस फैसल भारतीय रुपया पर बुरा असर देखने को मिलेगा जो कि पिछले एक साल में 12 फीसदी गिर चुका है।