दक्षिण कोरिया और ताइवान के मामले में यही हुआ। ये दोनों भी विकसित देशों की श्रेणी मे आ चुके हैं। चीन भी यही मॉडल अपनाए है। जैसे-जैसे देश धनी होते जाते व मेहनताना बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे पिछड़ी तकनीक के साथ श्रमिक आधारित निर्माण इकाइयां उन देशों का रुख करने लगती हैं जहां श्रमिकों का भुगतान सस्ता पड़ता है। वर्तमान में इस प्रक्रिया का सर्वाधिक फायदा बांग्लादेश को हो रहा है। वहां के गारमेंट उद्योग का देश की निर्यात आय में 80 फीसदी और सकल घरेलू उत्पाद में 20 फीसदी हिस्सा है। वर्ष 2017 में चीन के बाद बांग्लादेश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा व आपूर्तिकर्ता था। करीब 6.5 फीसदी बाजार पर कब्जे के साथ उसने अपने से कई गुना बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत को भी पीछे छोड़ दिया था।
इसमें कोई संशय नहीं कि विकास की इस उपलब्धि के लिए इंसानी और सामाजिक स्तर पर कीमत भी चुकानी पड़ी। बांग्लादेश के कामगारों को कठोर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। साथ ही हादसों की संख्या भी बढ़ रही है। वर्ष 2013 में एक भीषण हादसे में फैक्ट्री ढहने से हजार लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि इस औद्योगिक रणनीति की बदौलत एक सदी में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दोगुना हो गया है। इस उपलब्धि के साथ बांग्लादेश अब अपने पड़ोसी भारत के साथ अभूतपूर्व तरक्की की राह पर चल पड़ा है। ऐसे में दोनों देशों के बीच अर्थव्यवस्था और उत्पादन व्यवस्था में आगे बने रहने की होड़ लगी है।
भारत विकास की राह पर लगातार अग्रसर
विनिर्माण क्षेत्र में चुनौतियों के बावजूद भारत विकास की राह पर अग्रसर है जो बांग्लादेश से ज्यादा तेज है। इसका एक कारण सेवा क्षेत्र के उद्योगों का पनपना है। भारत की आउटसोर्सिंग कंपनियां इसकी मजबूत कड़ी हैं जैसे- सॉफ्टवेयर, फाइनेंस, ऑनलाइन सेवाएं, पर्यटन, मीडिया, स्वास्थ्य व अन्य सेवाएं। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत ने विकास का जो मॉडल अपनाया है वह पूरे विनिर्माण क्षेत्र की कृषि की खराब स्थिति से औद्योगिक अर्थव्यवस्था की तरफ ऊंची छलांग का कारक हो सकता है। हालांकि इसको लेकर विभिन्न मत भी हैं।
जानकार मानते हैं कि बुनियादी ढांचे की कमी और जरूरत से ज्यादा नियामक संबंधी लाल फीताशाही के कारण विदेशी निवेशकों के लिए भारत कठिन गंतव्य बना हुआ है। मशीनों का इस्तेमाल बढऩे से वस्त्र उद्योग में कामगारों की जरूरत घटी है। ये इशारा है कि निर्धन देश कपड़ा क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर शहरी रोजगार सृजित नहीं कर पाएंगे।
रोबोट से भी पिछडऩा दूसरों के लिए झटका
अनुमान है कि विकासशील देशों के लिए यह तय समय से पहले औद्योगिकीकरण में पहुंचने की स्थिति हो सकती है। यदि अमीर देशों के रोबोटों से प्रतिस्पर्धा के कारण बांग्लादेश पिछड़ता है तो यह इथियोपिया जैसे देशों के लिए बड़ा झटका होगा जो तरक्की की राह खोज रहे हैं। यह भी माना जाने लगेगा कि सेवा क्षेत्र के बूते विकास पाने का भारतीय मॉडल ही एकमात्र फॉर्मूला है। कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि मशीनीकरण ने पारंपरिक तरीकों की राह पूरी तरह बंद नहीं की है और निर्धन देशों में जरूरतमंदों के लिए उद्योगों में काम के पर्याप्त अवसर हैं। इन सबके बीच बांग्लादेश अपने विनिर्माण क्षेत्र का रुख ऑटो एवं इलेक्ट्रोनिक्स क्षेत्र की तरफ मोड़ रहा है।
विकास के मॉडल जो अपनाए गए वे प्रयोग बनते जा रहे हैं
दो अहम सवाल हैं क्या विकास के पारंपरिक मॉडल के बूते बांग्लादेश भारत से आगे निकल पाएगा? दूसरा, क्या भारत के हाथ विकास का कोई ऐसा मॉडल लग गया है जिससे उसके लिए दुनिया में अपना दबदबा बनाए रखने के मायने बदल जाएंगे? दोनों देशों के नेताओं के उद्देश्य समान हैं। फर्क इतना है कि विकास के जो मॉडल अपनाए हैं वे प्रयोग बनते जा रहे हैं। दोनों मॉडलों पर नजरें उन अफ्रीकी देशों की टिकी हैं जो विकास के इंजन को गति देने के लिए इन्हें अपनाने को आतुर हैं। यदि बांग्लादेश् विकास करता है तो इसका मतलब होगा कि विनिर्माण क्षेत्र में वस्त्र उद्योग ही अैद्यौगिकिकरण की चाबी है। यदि बांग्लादेश विफल होता है और भारत विकास दर बनाए रखता है तो कहना होगा कि निर्धन राष्ट्रों को सेवा क्षेत्र पर ध्यान देना होगा।
भारत को उम्मीद है परिणाम और बेहतर होंगे
भारत की बात है तो इस दौरान विनिर्माण क्षेत्र में उसका प्रदर्शन क्षमता से कम रहा है। गुजरात में वाहन निर्माण की कई इकाइयों के साथ वह दुनिया का छठा सबसे बड़ा ऑटो मैन्युफेक्चरर बन गया है। स्मार्टफोन का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है पर अर्थव्यवस्था के लिहाज से कुल उत्पादन घटा है पर उम्मीद है कि परिणाम अच्छे होंगे।
नोह स्मिथ, ब्लूमबर्ग के स्तंभकार व आर्थिक मामलों के जानकार, वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत