संयुक्त राष्ट्र शांति-सेना संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सेनाओं की मदद से एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में अलग-अलग परिस्थितियों में गठित की जाती है। इसका उद्देश्य टकराव को दूर करके शांति स्थापित करने में मदद करना होता है। संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक नीले रंग की टोपियां लगाते हैं या नीले रंग के हेल्मेट पहनते हैं, जो अब इस सेना की पहचान बन गई है। संयुक्त राष्ट्र की अपनी कोई सेना नहीं होती। इस सेना के सदस्य अपने देश की सेना के सदस्य ही रहते हैं। शांति-सेना के रूप में कार्य करते समय यह सेना संयुक्त राष्ट्र के प्रभावी नियंत्रण में होती है। शांति-रक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है। संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय इस सेना की परिकल्पना नहीं की गई थी, बल्कि बदलते हालात के साथ इसका विकास होता गया।
गूगल पर सर्च करें तो कई तरह की संख्याएं सामने आएंगी। ज्यादातर 6,40,000 को आस-पास हैं। हाल में जब भारत सरकार ने घोषणा की कि देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, तब यह संख्या 5,97,464 बताई गई। दरअसल यह संख्या राजस्व गांवों की संख्या है। वर्ष 2011 की जनगणना में राजस्व गांवों की संख्या 5,97,464 बताई गई थी। गांव की बस्ती, पुरवा जैसी कई परिभाषाएं हैं। यदि कुछ लोग कहीं घर बनाकर रहने लगें तो आधिकारिक रूप से उसे तब तक गांव नहीं कहेंगे, जब तक राजस्व खाते में उसका नाम दर्ज न हो जाए। शहरों के विकास के साथ हमारे देश में कई गांवों और बस्तियों का अस्तित्व खत्म भी होता जा रहा है, इसलिए यह संख्या बदलती रहती है।
लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। प्रतिनिधि के चयन से लेकर फैसले करने तक सारी बातें वोट से तय होती हैं। वोटिंग किसी के लिए भी की जा सकती है। ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ भी चुनाव की एक पद्धति है। जब एक से ज्यादा प्रत्याशी किसी पद के लिए खड़े हों, तब सबसे ज्यादा वोट पाने वाले व्यक्ति को चुना हुआ माना जाता है। भारत सहित अधिकतर देशों में चुनाव की यही पद्धति है।